पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१३८

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१४० भट्ट निबन्धावली रुपया हार गया तो बोला क्या परवाह दूसरे दौर में इसका दूना जीत लूँगा पर दूसरी बार जुश्रा में जो कुछ पल्ले का था सो भी निकल गया। ऐसाही एक सोने वाला विद्यार्थी बड़ा होने पर बहुधा अपने मित्रो से कहा करता मै जवानी में सां कर इतनी देर तक उठता था कि आज हिसाब लगाता हूँ तो ३० वर्ष मे २२ हज़ार के लगभग घंटे मैंने वेफाइदे खोये । याद रहे अगर आप रात वाले सोने का वाजिबी बर्ताव करते रहोगे तो धातु वाला सोना आप से आप पा मिलेगा। निश्चय जानिये मनुष्य के लिये कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है यदि चित दै हम उसे लिया चाहें । सोना वह वस्तु है कि इससे रोगियों का रोग, दुखियों का दुःख थके हुओं की थकावट जाती रहती है । वैद्यक वाले लिख भी गये हैं:- "श्रद्ध रोग हरी निद्रा सर्व रोग हरी सुधा" घोर सन्निपात हो गया, दिन रात तलफ रहा है, एक क्षण भी कल नही पड़ती, दस मिनट की एक झाँप आगई रोग आधा हो जाता है जीने की आशा बॅध जाती है । अस्तु, यहाँ तक तो हमने मिला के कहा अब अलग अलग लीजिये। रात को बिना सोये बादशाह को भी प्राराम नहीं पहुँचता सारी दुनिया का सोना चाहो घर मे भरा हो जब तक न सोइये चैन न पाइयेगा। सब दौलत और माल असबाब को ताक पर रख दीजिये और इस आरामदेह फरिश्ते के जरूर कैदी बनिये। अगर आपका दिल सैकड़ों झौंझट और फिकरों के बोझ से लदा हुआ है यहाँ तक कि उस बोझ को अलग फेक घड़ी आध घड़ी कहीं किसी पेड़े की टडी छाया में बैठ सीरी बयार का सेवन कर थोड़ा विश्राम करने का भी समय नहीं मिलता; ऐसे अभागे को इस फरिश्ते की हवालात में भी जहाँ जीव मात्र को श्राराम और स्वास्थ्य मिलता है उसी तरह की वेचैनी और वे करारी रहेगी। तात्पर्य यह कि सच्ची गाढ़ी नींद उन्हीं को पाती है जिनके दिलों में कोई गैर मामूली शिकायत नहीं रहती। बहुधा देखने में याता है ऐयाश शराबखोर देर से सोते हैं और देर