पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१००

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[शृंगार-
भामिनीविलासः।

यौवनोद्गमनितांतशंकिताः शीलशौर्यबलकातिलोभिताः।
संकुचंति विकसति राघवे जानकीनयननीरजश्रियः[१]॥३६॥

युवावस्थाके उपगम से अत्यंत सशंक, शील, पराक्रम, (बाहु) बल और (शरीर) कांतिकी लोभी, जानकीके कमलनयनोंकी शोभा, राघवके विषय में सकुची और आनंदित भी हुई (तरुण होनेसे लज्जित हुई परंतु रामचन्द्रके बल, शील, सुंदरता इत्यादिकके कारण प्रसन्न हुई यह भाव)

अधिरोप्य हरस्य हंत चापं परितापं प्रशमय्य बांधवानाम्।
परिणेष्यति वा न वा युवायं निरपायं मिथिलाधिनाथपुत्रीम्[२]॥३७॥

यह युवा (रामचंद्र,) शंकर के चाप को चढाय, बंधुजनौं के परिताप को शमनकर, मिथिलापतिपुत्री (जानकी) का निर्विन पाणिग्रहण करैगा अथवा नहीं! (यह जनकपुरवासियों की उक्ति है)

भुजपञ्जरे गृहीता नवपरिणीता वरेण रहसि वधूः।
तत्कालजालपतिता बालकुरंगीव वेपते नितराम्॥३८॥

एकांतस्थल में पति से आलिंगन कीगई नवविवाहिता [नवोढा] नायिका, तत्काल जाल में फंसीहुई बालमृगी के समान अत्यंत कंपित होती है।


  1. रथोद्धता छंद।
  2. 'माल्यभारा।