पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१३१

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विलासः२]
(१११)
भाषाटीकासहितः।

मीनवतीनयनाभ्यां करचरणाभ्यां प्रफुल्लकमलवती।
शैवालिनी च केशैः सुरसेयं सुंदरी सरसी॥१११॥

युगलनयनौं से मीनवाली, कर तथा चरणों से प्रफुलित कमलवाली और केशकलापसे सिवारवाली यह रसमई सुंदरी सरोवरिनी है ('रूपक' अलंकार है)

पांथ मंदमते किंवा संतापमनुविंदसि।
पयोधरं समाशास्व येन शांतिमवाप्नुयाः॥११२॥

हे मंदमति पथिक! क्यों (काम) संतापको सहता है? (अरे) पयोधर [कुच] की आशा कर जिस से शांति प्राप्त होवै (पथिकको उपदेश है कि कंदर्पताप पयोधर ही शांत करेंगे इससे उनका अवलंबन उचित है। यह श्लोक व्यर्थिक है; दूसरे अर्थमें संताप से दाह और 'पयोधर' से 'मेघ' अर्थ लेना चाहिए)

संपश्यतां तामतिमात्रतन्वीं शोभाभिराभासितसर्वलोकाम्।
सौदामिनी वा सितयामिनी वेत्येवं जनानां हृदि संशयोऽभूत्[१]॥११३॥

शोभासे सर्व लोकको सुशोभित करनेवाली उस अतीव कशाङ्गी (नायिका) को अवलोकन करनेवाले मनुष्योंके हृदयमें 'यह सौदामिनी है अथवा शुक्ल यामिनी है' इस प्रकारका संशय उत्पन्न हुआ ('संदेह' अलंकार है)


  1. 'इन्द्रवज्रा' छंद हैं।