पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(११२)
[शृंगार-
भामिनीविलासः।

सपल्लवा किं नु विभाति वल्लरी सफुल्लपद्मा किमियं नु पद्मिनी।
समुल्लसत्पाणिपदां स्मिताननामितीक्षमाणः समलंभि संशयः[१]॥११४॥

उल्लसित करचरणोंवाली हास्यमुखी (नायिका) के देखनेवालों को 'पल्लव सहित यह लताही शोभायमान है क्या'? अथवा 'कुसुमित है कमल जिसमें ऐसी पद्मिनी[२] ही है क्या'? इस प्रकार का संशय हुआ (यह भी 'संदेह' अलंकार है)

नेत्राभिरामं रामाया वदनं वीक्ष्य तत्क्षणम्।
सरोजं चन्द्रबिंबं वेत्यखिलाः समशेरत॥१२५॥

उस काल में, नेत्रौं को आनंददेनेवाले कामिनी के मुख को देख 'यह कमल है अथवा चंद्रबिंब है' इस प्रकार सब को शंका हुई।

कनकद्रवकांतिकांतया मिलितं राममुदीक्ष्य कांतया।
चपलायुतवारिदभ्रमानृनुते चातकपोतकैर्वने[३]॥११६॥

सुवर्णरसकी कांतिके समान सुंदर सीताजी के संगमें रामचंद्रको अवलोकन कर, चपलासंयुक्त यह मेघही है, इस नमसे चातकशावकोंने वनमें नृत्य किया ('भ्रम' अलंकार है)


  1. 'वंशस्था छंद है।
  2. तड़ागिनी, सरोवरिनी।
  3. 'वैतालीय छंद।