पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१५६

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[शृंगार-
भामिनीविलासः।


अर्थात् अल्प कटाक्ष देकर अमूल्य प्राण लेती है; तात्पर्य यह कि देती तो थोडा परंतु लेती बहुत है। इस श्लोकमें 'परिवृत्ति, अलंकार है)

जितरत्नरुचां सदा रदानां सहवासेन परां मुदं ददानाम्।
विरसादधरीकरोति नासामधुना साहसशालि मौक्तिकं ते॥१७४॥

(हे नायिके!) रत्नों की कांतिको जीतनेवाले दंतोंके सदा सहवासके कारण, अत्यंत आनंद देनेवाली नासिका को, द्वेषभाव से, तेरा साहस शालि (नासा-) मौक्तिक इस समय नीचदशाको प्राप्त करता है (रत्न जो मौक्तिकके सजातीय हैं उन्हें दंतोंने अपनी कांति से परास्त किया और इन्ही दंतौकी निकटवर्ती नासिकाभी है इससे मौक्तिकको क्रोध हुआ और नासिकामरण बनके उसके छेदन किए जानेका कारण हुआ यह भाव। नासा के अधोभागमें लटकने से दंतोके ऊपर मौक्तिक आजाता है इससे यदि ऐसा भी कहैं कि देतोके ऊपर पादप्रहार करके, उसने अपने सजातियोंका पलटा लिया तो क्या अनुचित है?)

विलसत्याननं तस्या नासाग्रस्थितमौक्तिकम्।
आलक्षितबुधाश्लेषं राकेंदोरिव मंडलम्॥१७५॥

नासिकाके अग्रभागमें है मौक्तिक जिसमें ऐसा उस (नायिका) का मुख, बुध नामक ग्रहसे आलिंगित अवलोकन