पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१६२

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[करुणा-
भामिनीविलासः।

सर्वेऽपिविस्मृतिपथं विषयाः प्रयाता विद्याऽपि खेदकलिता विशुखीबभूव।
सा केवलं हरिणशावकलोचना मे नैवापयाति हृदयादधिदेवतेव॥३॥

सर्व विषयभी भूल गए (और) खेदयुक्ता (मेरी) विद्या भी विमुखी हुई अर्थात् उसका भी विस्मरण हुआ (परंतु) इष्टदेवता के समान केवल वह मृगशावक लोचनी (कामिनी) मेरे हृदयसे दूर नहीं होती।

निर्वाणमंगलपदं त्वरया विशंत्या मुक्ता दयावति दयाऽपि किल त्वयाऽसौ।
यन्मां न भामिनि निभालयसि प्रभात निलारविंदमदर्भगिमदैः कटाक्षैः॥४॥

हे दयावति भामिनि! मोक्षपदको शीघ्रही गमन करने वाली तू ने यह (अपनी) दया भी त्यागी, जो (तू) प्रातःकालके नीलकमलके मदको भंग करनेवाले कटाक्षौंसे मेरी ओर देखती (भी) नहीं।

धृत्वा पदस्खलनभीतिवशात् करं मे या रूढवत्यसि शिलाशकलं विवाहे।
सा मां विहाय कथमद्य विलासिनि द्यामारोहसीति हृदयं शतधा प्रयाति॥२॥

हे विलासिनि! पदस्खलन भय से मेरे हस्तका अवलं