पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१६३

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विलासः३]
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भाषाटीकासहितः।


बन कर विवाह कालमें जो पाषाणशिला पै चढी उसने! आज मुझे त्याग, स्वर्गको किस प्रकार आरोहण किया? (ऐसे विचार हाय मेरे) हृदयको शतधा (विदार्ण) करते हैं,

निर्दूषणा गुणवती रसभावपूर्णा सालंकृतिः श्रवणमंगलवर्णराजिः।
सा मामकीनकवितेव मनोऽभिरामा रामा कदापि हृदयान्मम नापयाति॥६॥

निर्दोष, गुणवती, रसभावपूर्ण अलंकारयुक्त, कोमल अक्षरवाली मेरी कविताके समान, (दुराचारादि) दोषरहित, (गृहिणी) गुणसम्पन्न, (शृंगाररसानुयायि) हावभावपरिपूर्ण अंगाधरणसहित, कर्णानंददायक भाषण करनेवाली वह मन मोहिनी कामिनी कदापि मेरे हृदय से दूर नहीं जाती!

चिंता शशाम सकलाऽपि सरोरुहाणामिंदोश्च विवमसमां सुषमामयासीत्।
अभ्युद्गतः कलकलः किल कोकिलानां प्राणप्रिये यदवधि त्वमितो गताऽसि॥७॥

'हे प्राणप्रिये! ज्योंहीं तू इस लोकसे गई (त्योंही) कमलों की समस्त चिंता शांत हुई; चन्द्रबिंब महान शोभा को प्राप्त हुआ, (और) कोकिलाओंका कलकल शब्द प्रकट हुआ (जब तक तू वर्तमानथी तब तक तेरी कोमलता देख कमल चिंतामें निमग्न थे कि तेरे अंग उनसे भी अधिक