पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१६४

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[करुणा-
भामिनीविलासः।


कोमल हैं, चन्द्रमा अपनेको, तेरे सन्मुख तुच्छ समुझता था और तेरी वीणासदृशवाणीको श्रवण कर कोकिलाओनें शब्दही करना बंद कर दियाथा; परंतु तुझे स्वर्ग सिधारी जान अब उन सबको हर्ष प्राप्त हुआ है यह भाव)

सौदामिनीविलसितप्रतिमानकांडे दत्त्वा कियंत्यपि दिनानि महेन्द्रभोगान्।
मंत्रोज्झितस्य नृपतेरिव राज्यलक्ष्मीर्भाग्यच्युतस्य करतो मम निर्गताऽसि॥८॥

सौदामिनी के विलास समान अर्थात् क्षणमात्र ही रहनेवाले, सुरेन्द्र के सेवन योग्य, महान भोगों को कुछ दिन पर्यंत देकर (अकस्मात्) अकाल ही में, मुझ भाग्यहीन के हस्त से, मंत्रहीन अर्थात् राजधर्मविहीन राजा की राज्य लक्ष्मी के समान (तू) निकल गई।

केनापि मे विलसितेन समुद्गतस्य कोपस किं नु करभोरु वशंवदाऽभूः।
यन्मां विहाय सहसैव पतिव्रताऽपि याताऽसि मुक्तिरमणीसदनं विदूरम्॥९॥

हे करभोरु[१]! क्या तू मेरे किसी अयोग्य विलास से उत्पन्नहुए कोप के वश होगई, जो पतिव्रता होकर भी मुझे सहसा त्याग मुक्तिरूपी रमणी के दूरवर्ती गृह को चली गई

  1. हस्तीके शुंडके समान हैं जंघा जिसकी ऐसी।