पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/३८

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(१८)
[प्रास्ताविक-
भामिनीविलासः।


पुरुष को देख, दुष्टों के द्वारा उसके अपकार होने की शंका मन में रख कोई सत्पुरुष तरुपत्यन्योक्ति से अपना विषाद दुष्टजनों की दुष्टता और धार्मिक मनुष्यों की अवस्था वर्णन करता है)

ग्रीष्मे भीष्मतरैः करैर्दिनकृता दग्धोऽपि यश्चातक।
स्त्वां ध्यायन्धन वासरान् कथमपि द्राधीयसोनीतवान्
दैवाल्लोचनगोचरेण भवता तस्मिन्निदानीं यदि।
स्वीचक्रे करकानिपातनकृपा तत् कं प्रति ब्रूमहे३५॥

हे मेघ! जिस चातक ने ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रचंड किरणों से दग्ध हो तेरा ध्यान धर जैसे तैसे बड़े बड़े दिन काटे, दैवयोग से उसके सन्मुख प्राप्त होकर यदि तही उपल प्रहार करने लगा तो फिर किससे क्या कहै! (जब पालन कर्ता ही प्राणहर्ता हुवा तब महा ही अन्याय समझना चाहिए)

दवदहनजटालज्वालजालाहतानां।
परि गलितलतानां म्लायतां भूरुहाणाम्॥
अपि जलधर शैलश्रेणिश्टंगेषु तोयं।
वितरसि बहु कोऽयं श्रीमदस्तावकीनः॥३६॥

हे जलघर? दावानल समूहसे दग्ध, लतागलित, मलीन वृक्षों (का अनादर करके) तू शैलशृंगौं पर जल बरसाता है, यह तेरा कैसा श्रीमद है! (जिसे आवश्यकता है उसको विस्मरण