पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/६१

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विलासः१]
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भाषाटीकासहितः।

अमितगुणोऽपि पदार्थों दोषेणैकेन निन्दितो भवति।
निखिलरसायनमहितो गन्धेनोग्रेणलशुन इव॥८१॥

अनेक गुणसम्पन्न पदार्थ एक दोषके होनसे भी निन्दित गिना जाता है! सर्व औषधियोंमें श्रेष्ठ लहसुन जैसे अपनी तीक्ष्ण गंधके कारण निंब है (इसमे 'पूर्णोपमा' है)

उपकारमेव तनुते विपद्गतः सद्गुणो नितराम्॥
मूर्च्छी गतो मृतो वा निदर्शनं पारदोऽत्र रसः८२॥

सज्जन विपत्ति में भी उपकार करते हैं। इसमें मृतक अथवा मूर्छित [अर्द्ध मृतक] पारद [पारा] रस दृष्टांत है। अर्थात् पारा चाहै मृतक हो चाहै अर्द्ध मृतक हो परंतु गुण वह अवश्य करैगा (दृष्टांतालंकार है)

वनांते खेलंती शशकशिशुमालोक्य चकिता
भुजप्रांतं भर्तुर्भजति भयहर्तुः सपदि या।
अहो सेयं सीता दशवदननीता हलरदैः परीता रक्षो-
भिः श्रयति विवशा कामपि दशाम्॥८३॥

वन मे क्रीड़ा करती हुई जो सीता एक शशा के बालक को भी देख चकित हो जय के नाश, करनेवाले अपने पति श्री रामचन्द्रजी को, आलिंगन करती थी; हाय अब वही दशानन से हरण की हुई और बड़े बड़े हल समान दंतौं वाले राक्षसों से व्याप्त, परवश कैसी दशा [अर्थात्-दुर्दशा] को