पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/७१

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विलासः१]
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भाषाटीकासहितः।


ना होने पै भी) तू अपने गुणों से महिमाको प्राप्त होता हा (इसमें अप्रस्तुत चंदन की प्रशंसा करके उस सत्पुरुष का वृत्त वर्णन किया जो नीच कुलोत्पन्न और दुर्जनौं का संप्तर्गी होकर भी अपने सद्गुणों से अपनी कीर्ति संसारमें प्रसार करता है)

कस्मै हन्त फलाय सज्जन गुणग्रामार्ज्जने सज्जसि
स्वात्मोपस्करणाय चेन्मम वचः पथ्यं समाकर्णय।
ये भावा हृदर्श हरन्ति नितरां शोभाभरैः
सम्भृतास्तैरेवास्य कलेः कलेवरपुषो दैनन्दिनं वर्द्धनम्॥१०३॥

हे सज्जन! हाय, तू किस फल के अर्थ गुणगणौंका संचय करले को कटिबद्ध होता है; यदि (यह अर्जन) आत्मा के पोषण के लिए है तौ मेरे हितकारी वचनों को श्रवण कर, (मुझे कहना इतनाही है कि) जो मनोहर भाव तेरे मन जो हरण करते है वे इस शरीर पोषक [विषयासक्तता प्रवृत्तक] कलिकाल (की दुखद अवस्था) को प्रतिदिन बढानेवाले हैं। (गुणगणौं अर्थात् सत, रज व तम गुण संबंधी वासना को श्रेयस्कर जान उसी के लिए परिश्रम करनेवाले पुरुष को कवि यह उपदेश देता है कि तू इस विषय में वृथा कष्ट न कर कलि के स्वभाव के प्रभाव से जगद्वासनाओं में जो प्रवृत्त होते हैं और शरीर को सुख देने