पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२०

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२—इनके विषय में हम इतना ही जानते हैं कि इनकी जन्मभूमि तुर्किस्तान थी और यहां से चलते चलते अफ़ग़ानिस्तान होते हुए हिमालय पहाड़ के पश्चिमोत्तर के दर्रों की राह इस देश में आ गये। आर्य्य लोगों का रंग गोरा, डील बड़ा, माथा ऊंचा और रूप सुन्दर था। यह उन पीले नाकचिपटों से भिन्न थे जो पूर्व की ओर मङ्गोलिया में रहते थे।

३—इन लोगों ने गांव और छोटे छोटे नगर बसा रक्खे थे; भेड़, बकरी, गाय, बैल पालते थे; धरती जोतते बोते थे; जौ, गेहूं की खेती करते थे और कपड़ा बिनना जानते थे। पर लोहे के हथियार बनाना इन्हें नहीं आता था। ताम्बा और रांग आग पर गलाते थे और उनको मिलाकर कांसा बना लेते थे। इसी के चाकू, छुरी और बरछियां बनती थीं।

४—आस पास के बहुत से कुल मिलकर एक जाति के नाम से प्रसिद्ध थे जिसका एक सरदार रहता था और वही काम पड़ने पर सेनापति बन जाता था। यह जातियां बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गईं कि जन्मभूमि में समा न सकीं। इस लिये कुछ जातियां दक्षिण-पश्चिम चली गईं और पारस में जा बसीं और उन्हीं के कारण इस देश का नाम ईरान पड़ गया जो आर्यान का दूसरा रूप है। कुछ आर्य भारतवर्ष में चले आये और बहुत दिनों तक पंजाब में बसे रहे।

५—जो आर्य हिन्दुस्थान में आकर बसे उनको अङ्गरेज लोग इन्डो आर्यन् कहते हैं जिसका अर्थ हिन्दुस्थानी आर्य है। यह लोग लिखना नहीं जानते थे और हमारे लिये ऐसा कोई लेख नहीं छोड़ गये जिससे उनका पूरा हाल जाना जाय। पर यह लोग देवताओं की स्तुति मन्त्र पढ़कर करते थे और अपनी सन्तान को शुद्धता और स्वच्छता के साथ उन मन्त्रों का पढ़ना सिखाते थे।