पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२१४

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होकर जाने न देते थे। यह उतरवाई कहलाती थी। कभी कभी बीस मील की यात्रा में दस बारह जगह उतरवाई देनी पड़ती थी।


४५—नादिरशाह।

नादिरशाह।

१—औरङ्गजेब के मरने के तीस बरस पीछे नादिर खां नाम एक सरदार ने फ़ारस की राजगद्दी पर अधिकार जमा कर अपना नाम नादिरशाह रख लिया और अफ़गानिस्तान को भी पराजित कर लिया। इसके पीछे महम्मदशाह के पास मित्रता व्यवहार में एक दूत भेजा। महम्मद शाह ने दूत के साथ वैरभाव का बरताव किया और कहने लगा कि "आज नादिरशाह बादशाह हो गये हैं"।

२—नादिर क्रोधी स्वभाव का पक्का मुसलमान था। उसने महम्मदशाह पर यह दोष लगाया कि वह मुसलमान बादशाह के धर्मानुसार काम नहीं करता अर्थात् उसने हिन्दुओं से जज़िया क्यों नहीं लिया और भयभीत होकर मूर्तिपूजक मरहठों को चौथ क्यों दी। इस बहाने से नादिरशाह ने महम्मदशाह को दण्ड देने का बिचार किया। और ईरानियों और अफग़ानों की एक बड़ी सेना लेकर जिस तरह ३४० बरस पहिले तैमूरलङ्ग आया था यह भी ख़ैबर के दर्रे से निकल कर पंजाब को कुचलता और सत्यानाश करता हुआ दिल्ली में आ गया।