पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२१५

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३—नादिरशाह बड़े डील डौल का मनुष्य था। वह छः फुट लम्बा, बदन का रंग काला, माथे पर बाल पड़ा हुआ, घनी भँवै, बोली में बादल के समान गर्ज, आँखें बिजली की नाईं चमकती हुई थीं। वह भेड़ के बच्चे की काली खाल के चमड़ों का चोगा पहिनता था और फ़ारस की नोकदार कुलाह दिया करता था। परन्तु भारत में आकर उसने लाल रंग का बड़ा मुड़ासा सिर पर बांधा; कमर में खंजर हाथ में लोहे का तबर रखता था। हिन्दुओं को दृष्टि में वह पूरा राक्षस जान पड़ता था।

४—नादिरशाह कहता था कि जो मुझे बहुतसा धन मिल जायगा तो मैं नगर को न उजाडूंगा। परन्तु रात के समय दिल्ली के लोगों ने नादिरशाह के कुछ सोते हुए सैनिक मार डाले। नादिरशाह ने जब सबेरे यह हाल देखा तो उसके शरीर में आग लग गई और उसने आज्ञा दी कि नगर को लूट लो और जो सामने आये उसको मार डालो। दिन भर नादिरशाह की सेना ने तैमूर के तुर्कों की नाईं लूट खसोट, अग्निदाह और हत्याकाण्ड मचा रक्खा। सायंकाल को महम्मदशाह आकर नादिरशाह के पैरों पर गिरा और प्रार्थना की कि अब यह हत्याकाण्ड बन्द कर दिया जाय। नादिरशाह ने अपनी सेना को आज्ञा दी बस अब किसी को न मारो और सेना ने उसकी आज्ञा मान ली।

५—दूसरे दिन नादिरशाह और उसके साथियों ने दिल्ली के उस कुल धन को समेटा जो बाबर के समय से मुगल सम्राट बटोरते आये थे। शाहजहां का तख़्ते ताऊस, शाही ताज और बेगमों के जड़ाऊ गहने, अच्छे से अच्छे हाथी, घोड़े, तोपैं, बहुमूल्य अतलस, कमख़ाव, मलमल, शाही खज़ाने और दिल्ली और अवध के बड़े आदमियों और रईसों के जमा किये हुए धन के ढेर अपने साथ ले गया। नादिरशाह के हाथ इतना धन लगा कि वह