पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/४७

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७—दक्खिन की सब से प्राचीन और शक्तिमान् चार रियासते थीं। पहिली पाण्ड्य, टामिल देश के धुर दक्षिण में थी; इसकी राजधानी मदुरा थी। दूसरी चोल, टामिल देश में पाण्ड्य की उत्तर दिशा में; इसकी राजधानी काञ्ची (कांजीवरम) थी। तीसरी चेर कर्नाटक देश में जो आज कल मैसूर के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी केरल जो पश्चिमीय घाट और समुद्र के बीच में थी। इसको अब मलयवार और त्रावंकोड़ कहते हैं। इनमें नित्य लड़ाई झगड़े रहते थे; विशेष करके पाण्ड्य और चोल की रियासतों में। कुछ विद्वानों का विचार है कि उत्तरीय भारत के क्षत्रियों ने इन रियासतों की नेव डाली थी; कुछ का कथन है कि पहिले ही से यहां द्रविड़ राजा राज करते थे। कहते हैं कि अगस्त्य मुनि द्रविड़ देश में आये थे और पाण्ड्य की राजधानी में बहुत दिनों तक एक राजा के पाहुने रहे और उन्हों ने इस देश के निवासियों को अपना धर्म सिखाया। पश्चिमीय घाट की सब से ऊंची चोटी उनके नाम पर आज तक अगस्त्यमलय कहलाती है।

(३) प्राचीन हिन्दू समय की विद्या और कला।

(ईसा से पहिले १००० बरस से २०० बरस तक।)

१—जब आर्य भारतवर्ष की हरी भरी और उपजाऊ तरेटियों में बस गये तो ब्राह्मणों को जिनकी एक पृथक जाति बन गई थी पढ़ने लिखने के हेतु बड़ा समय मिलता था। अब वह न तो लड़ाई में जाते थे और न खेतीबारी करते थे। जिस किसी बस्तु की उन्हें आवश्यकता पड़ती थी वह और जातियों के लोग उन्हें पहुंचा देते थे। पूजा के पीछे सारा दिन अपना था। इनको वेद कंठ करना पड़ता था और इसमें निःसन्देह बड़ा समय व्यतीत