पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/९१

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हाकिम के आधीन हो गये तो उनकी एक बड़ी प्रबल जाति बन गई। आपस में लड़ना कटना बन्द हो गया था तौभी बड़े बीर लड़ाके थे। इसलाम दीन से उनके मन में बड़ा उत्साह हो गया और यह समाया कि और देशों में अपने धर्म का प्रचार करें। जो लोग खुशी से मुसलमान हो जायं उनको भाई समझें और उनके साथ अच्छा बरताव करें। ईश्वर धर्म की लड़ाई (जिहाद) से खुश होता है और जो मुसलमान जिहाद में मारे जाते हैं वह सीधे बिहिश्त (वैकुंठ) जाते हैं। और जो लोग आधीन होने पर अपना धर्म न बदलैं उन्हें एक महसूल देना पड़ता है जिसका नाम जिज़िया है।

५—अरबवाले पहिले उन देशों की ओर चले जो उनके उत्तर थे और उन्हें सहज ही जीत लिये। लट खसोट का बहुत सा धन उनके हाथ लगा तो उनको यह चाह हुई कि और देश जीतें। परिणाम यह हुआ कि देश पर देश जीत लिये गये और सौ बरस के भीतर फ़ारस, तुर्किस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और आस पास के सारे देश जो दारा और अफ़रासियाब के आधीन थे उनके बस में आ गये और उनके रहनेवाले मुसलमान हो गये।

६—फ़ारस में कुछ लोग ऐसे भी थे जो अरबवालों के आधीन न हुए और न जिन्हों ने इसलाम धर्म अङ्गीकार किया और फ़ारस से निकल कर भारतवर्ष में चले आये। यह लोग १२०० बरस से यहीं बसे हैं और पारसी कहलाते हैं और पुराने आर्यों की तरह आग को परमेश्वर की ज्योति समझते हैं। पारसी बम्बई हाते में समुद्र के तीर नगरों में रहते हैं; बड़े नेक शांति चाहनेवाले और चतुर व्यापारी हैं और धर्म और देशहित में बहुत सा धन खर्च करते हैं।

७ॉ—जो देश हिन्दुस्थान के उत्तर थे उनमें भी अरबवालों ने