पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मौर्य वंश-सम्राट चन्द्रगुप्त १४१ - तीय अभियान मई सन् ३२७ ई० पू० में भारम्भ होकर मई सन् ३२४ ई० पू० में जब उसने सूसामें प्रवेश किया, समाप्त हुआ। इस अवधिमेसे केवल उन्नीस मास सिकन्दरने सिन्धु नदीके पूर्व में बिताये अर्थात् फरवरी या मार्च सन् ३२६६० पू० से लेकर सित- म्बर अकोबर मन् ३२५ ई० पू० तक। सभी इतिहास लेखकोंका इस वातपर एकमत है कि सिक- न्दरको उस बड़े बावेका कोई स्थायी प्रभाव भारतके इतिहास और भारतकी सभ्यतापर नहीं हुआ। यहांतक कि कुछ ऐति- हासिक उसके भारतीय माक्रमणकी उपमा उन डाकुओंकी लूट .खसोटसे देते हैं जो सीमा प्रदेशपर सीमा प्रदेशको जातियोंकी ओरसे आये दिन होती रहती है। किसी भारतीय इतिहास- लेखकने, चाहे वह हिंदू हो, या चौद्ध, या जैन, सिकन्दर या उसके आक्रमणका तनिक भी उल्लेख अपनी पुस्तकमें नहीं किया। इसका कारण यही है कि सिकन्दर भारतके किनारेसे ही लोट गया और वास्तविक भारतमें प्रवेश करने ही न पाया। उस समयके भारतका राजनीतिक और धार्मिक फेन्द्र मगध प्रांन धा, जहां कि नन्द वंशके राजा राज्य करते थे। . दूसरा परिच्छेद। . मौर्य वंश-सम्राट चन्द्रगुप्त अब भारतके राजनीतिक रङ्गमञ्चपर एक ऐसा प्रतिष्ठित नाम आता है जो संसारके सन्नाटाकी प्रथम श्रेणी में लिपनेके योग्य है, जिसने अपनी धीरता, योग्यता और व्यवस्थाले समस्त उत्तरी भारतको विजय करके एक विशाल केन्द्रिक राउरके अधीन