पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९५

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कौटिल्यका अर्थशास्त्र १६५ जहाजोंका चलाना चन्द्रगुप्तके राजत्व कालमें भारतमें समुद्र और नदियोंके द्वारा यात्रा करनेकी बहुत और नदियोंकी प्रथा थी। यहांतक कि इस यात्राके लिये याना। राजकीय पोत और नायें रक्खी जाती थीं। इनका विभाग सर्वथा अलग था। कौटिल्य समुद्री पोतोंका भी उल्लेप करता है । ये ब्रम्हा और चीनतक पूर्व में भीर अरब तथा ईरानकी बन्दरगाहों में पश्चिमको ओर जाते थे। नदियों पर सरकारी पुल थे। और नदियोंकी यात्राके सम्बन्धमें विशेष नियम थे। ये पुल लकड़ीके और ईट तथा पत्थरके बने हुए थे। कई जगहोंपर नायोंके भी पुल थे अथवा अस्थायी रुपसे हाथियोंकी पीठपर बनाये जाते थे। पब्लिक वसका इसी प्रकार साधारण सड़कों के विषयमें भी एफ नियमपूर्वक संहिता थी। नगरों में जो सड़कें गाड़ियों के लिये बनाई जाती थीं उनके लिये पत्थर या साधारण काठका फर्श तैयार किया जाता था । योझ ढोने और पैदल चलनेके लिये अलग सड़कें थीं और श्मशान भूमिको जानेके लिये अलग। प्रत्येक सड़फकी चौड़ाई नियमानुसार नियत की जाती थी। पैदल पधिकोंकी सड़फ चार फुट, दूसरी सड़कें बत्तीस फुटतक, राजकीय मार्ग और यढ़े बड़े व्यापारिक पथ उनसे दुगुने चौड़े होते थे। जिलोंमें बहुत सी सड़कें बनाई जाती थीं। ये राजधानीको बड़े बड़े नगरों, बड़े बड़े गांवों, पड़ी बड़ी खानों, गोचरभूमियों, उद्यानों और वनों आदिसे मिलाती थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्तके समय- संभूष समुत्थायी में सहकारी रोति भी प्रचलिन थी। सम्भूय समा। समुत्थायी समायें शषि, बापार, शिल्प विभाग।