पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२०२

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भारतमपका ias । . पश्चात्ताप तथा धर्म-प्रचारमें व्यतीत किया। उसने अपने कर्म- चारियोंके नाम जो आशायें फलिङ्गको प्रजापर प्रेम और कोमल लतासे शासन करनेके सम्बन्धमें निकाली वे भी उसके हार्दिक भावोंका प्रकाश करती है। अशोक और महाराजा अशोकके टकरका कोई दूसरा राजा संसारके इतिहासमें नहीं हुआ। कुछ अकबर। ऐतिहासिफ उसकी तुलना अकयर, शालीमैन मौर सीज़रसे फरते हैं। परन्तु यह तुलना ठीक नहीं। शायद संसारके इतिहासमें कोई दूसरा ऐसा शासक नहीं हुभा जिसने 'अपने शासनमें ऐसे उत्तम नियमों के अनुसार कार्य किया हो जैसे कि अशोकने किया। जिस प्रकार महात्मा बुद्ध संसारके महात्माओंमें अद्वितीय है वैसे ही महाराज अशोक संसारके शासकोंमें अनुपम है। बौद्ध-धर्मको ऐसा प्रतीत होता है कि सिंहासनपर यैठने के समय अशोक बौद्ध धर्मका अनुयायी दीक्षा। न था और उस समय मुद्ध-धर्म भारतमें मली. भांति प्रतिष्ठित भी नहीं हुआथा। इसमें सन्देह नहीं कि बौद्ध और जैन प्रचारकोंने ब्राह्मणोंकी शिक्षाके विरुद्ध बहुत कुछ अप्रसरता फेल दी थी। परन्तु सर्वसाधारणमैं अभी इन धम्माकी जड़ पफी न हुई थी। सारी शक्ति और प्रभाव वौद्ध-धर्म के प्रचारमें लगाया। इसका . फल यह हुया फि पश्चिमी एशियाके कुछ भागको छोड़कर शेष सारे एशियामें बुद्ध धर्म फेल गया । शासनके विषयों- अपने शासनके सग्रहवें या अठारहवें पर्ष- की घोषणा। में उसने अपनी शासन-प्रणालीको घोषणा की और अपने कर्मचारियों और मधीनस्योंके महाराज अशोकने अपनी