महाराजा बिन्दुसार यौर महाराजा अशोकका राजत्वकाल, १७५ बाद वह सारनाथ, श्रावस्ती पौर गयाको गया। और मन्तको कुशिनगरमें जाकर, उसकी यात्रा समाप्त हो गई। यहां भगवान् बुद्ध पञ्चत्यको प्राप्त हुए ये । इन सब स्थानों में अशोकने अपनी यात्राके स्मारक प्रतिष्ठित किये। ये स्मारक चिरफालके पीछे गय प्रगट हुए हैं । इन स्थानों में उसने दरिद्रों और ब्राह्मणों में चाहतसा धन यांटा । कई स्थानोंको सदाके लिये राजस्व मोचन कर दिया । युद्धके शिष्योंके समाधि-मन्दिरोंके भी उसने दर्शन किये । सन् २५३ ई० पू० में या इसके लगभग जय अशोकको शासन फरते तीस वर्ष हो चुके थे, उसने सात स्तम्भ लेखोंके लिये पड़े फराये । इनपर उसने अपनी पूर्व शिक्षाफी पुनरा- वृत्तिकी और ये सब आशा लिपी जो उसने धर्म और शीलके सुधार के लिये निकाली थी। इन स्तम्भ-लेखोंमें संक्षेपसे चे नियम भी दिये हुए हैं जो पशु-वध या हिंसाका निषेध करते हैं। अशोकका राज्य उत्तरमें हिमालय और की सीमाएँ। 'हिन्दूशुश पर्वततक पहुंचता था । सारा अफ- गानिस्तान, बलोचिस्ताग और सिन्ध उसके अधीन था। सवात और याजौरके प्रारत और काश्मीर तथा नेपाल भी इसके राज्यमें मिले हुए थे। काश्मीरमें उसने एक . नयी राजधानी बसाई। इसका नाम श्रीनगर रपसा । नेपालमें भी उसने पुरानी राजधानीके स्थान ललितपाटन या ललितपुर नामकी एक नयीन राजधानी यनाई। यह पटमण्डूसे ढाई मील दक्षिण-पूर्यको है। जब वद नेपाल गया तब उसके साथ उसकी पुत्री चारुमती भी थी। यह भिक्षुणी बन गई और नेपाल में रहकर धर्म प्रचार करती रही । उसने यपने पति देवपालके सारमा (को)म बने पामा रग किया था। यायो । म दिन १२६ धीर गया पिर मरे भी उई पूर्वमान प्रामा अशोकके साम्राज्य-