पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२५७

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शिक्षा। गुप्त राजाओंके कालमें हिन्दू साहित्य और वालाकी उन्नति २२५ धूतशालामाको सर्वथा बन्द किया जाय और जुआ खेलनेरालो- दएड दिया जाय। राज्य भरनेका अधिकार फेवल क्षत्रियों को ही दिया गया है। आर्य लोगोंको शूट राजाके राज्यले अलग रहनेका उपदेश है। इसके अतिरिक्त टनको किसी ऐसे नगरमें भी रहनेको भामा नहीं जहा शूद, नास्तिक या पतित लोगोंकी संख्या अधिक हो। मनुकी राजनीतिक मनुकी राजनीतिक शिक्षामें राजाको पूर्ण अधिकार दिये गये हैं। परन्तु साथ हो पद भी निश्चय किया गया है कि अत्याचारी, कपटी, व्यभिचारी और क्रोधके वशीभूत राजाको उसके दुष्कर्म ही नष्ट कर देंगे। राजाके लिये आवश्यक है कि सात माठ धर्मातला, वीर, रण विद्या विशारद विद्वानों और कुलोन पुरुषों की एक राजसभा (कौंसिल भाव स्टेट) नियत करे और युद्ध सधि, सेना और समुद्र प्रान्ध, राजस और बचोंके सम्बन्ध उनकी मम्मति के अनुसार काम करे। राजाका कर्तव्य है कि प्रजाको अपनी सन्तान समझकर उससे न्याय और दयाका चर्ताव करे । अन्यथा मूर्तता मोर अत्याचार की अवरयामें यह यावश्यक है कि वह और उसका घंश न केवल राज्यले वरन, माणोंसे भी धचिन पिया जाय । भारतवर्षके इतिहासमें इस पातका यथेष्ट प्रमाण है कि इस शिक्षा अनुसार कार्य होता रहा है। धन धान्यकी प्रचुरताके समयमें राजा सरकारी राजस्व । वश्य लोगोंसे उनकी फसलका ०८३ भाग और उनके व्यक्तिगत लाभका ०२ भाग ले सकता है। परन्तु सार्व. जनिक आवश्यकताको अवस्थामें उसको.१६ और पुछ दशाओं में अधिकार था। व्यापारपराधकसे तपजका २५भागने