पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२७२

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२३८ मारतवर्षका इतिहास M घनसाङ्ग जिस समय नालन्द पहुंचा, हानसाग- उससे पहले उसकी प्रसिद्धि वहां पहुंच चुकी थी। यह चीनी यात्री २६ वर्षकी आयुमें स्वजन्म भूमिसे चला। जिस समय उसने प्रस्थान किया उस समय यद महायान सिद्धा- न्तका उभट विद्वान और प्रभावशाली प्रचारक गिना जाता था। यह भारतमें चौद्ध सम्प्रदायको पुस्तकें इकट्ठो करने और योग- विद्या सीखने के लिये आया। घनसाङ्ग उत्तरीय मार्गसे झील अस्तकाल, ताशकन्द, समरकन्द और कन्दजमेंसे होता हुआ सन् ६३० ई० में गान्धार पहुंचा। वह तेरह वर्पतक भारतमें घूमता रहा । इस यात्रामें उसे बहुत कष्ट हुआ। एक बार उत्तर- पश्चिमी सीमापर उसको सागरदस्युओंने पकड़ लिया और बालानेकी तैयारियां की। यू नसाङ्गने तयारीके लिये कुछ मिनट का अवकाश मांगा और अलग बैठकर ध्यानमें लीन हो गया। वह अभी ध्यानमें निरत था कि एक ऐसी आंधी माई जिससे वे डाकू बहुत मयभीत हो गये और उस आंधीको चीनी यात्रीका चमत्कार समझकर उसके चरणोंपर या गिरे। धू नसाङ्ग भारतके मिन्न मिन भागों में उस समयका राजनीतिक फिरता रहा। बहुतले भागों में उसको सड़कें उत्तम मीर धर्म-शालायें बहुत अच्छी मिली प्रवन्ध। जिनमें दरिद पथिकोंको भोजन और औषधि. दिना मूल्य दी जाती थी फाहियानकी तरह यह चीनी यात्री भी यही लिखता है कि राज्य प्रजाकी यातोंमें यहुत कम हस्तक्षेप करता है और अपनी प्रजासे वेगार नहीं लेता। कृषिकार उपजका छठयाँ भाग करमें देते थे और पारी लोग पुलों आदिपर बहुत थोड़ी चुङ्गी देकर अपना कार थे। राजकीय भूमियोंकी आय चार भागोंमें विभकी जाती थी। पक