पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२७४

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भारतवर्षका इतिहाम क्षत्रियों की बहुत प्रशंसा करता है। यह लिखता है कि ये लोग हार्थोक और हृदयके साफ थे। उनका जीवन सरल और पवित्र था। ये मितव्ययसे निर्वाह करते थे। ब्राह्मण लोग अपने धर्मके पके थे। वे रीति-नीतिका अनुसरण करते थे। प्रदेशके कुछराजा बौद्ध धर्मावलम्बी थे और कुछ दूसरे हिन्दु थे। दक्षिण भारतमें जैनोंका प्रायल्य था । पाटलीपुत्र और गया उजड़ चुके थे। स्वागत। नालन्दमें घनतांगका नालन्दके मियोंने बड़े समारोहके साथ चीनी यात्रीका स्वागत किया और उसे विश्वविद्यालयका अतिधि घनाया। उसकी सेवा और सम्मान राजाओंके सदृश किया यह चीनी यात्री मगधके चावलों और हिन्दुओंके पकवानकी बहुत प्रशंसा करता है। यह नालन्द विश्वविद्यालयके भवन शोमाके विषय में भी बहुत कुछ लिखता है। यह विश्वविद्या लय बुद्धके समयसे आरम्भ होकर उस समयतंक उत्तरेचर उन्नति ही करता गया था। इसके भवनों में अति विशाल, सुन जित मोर सुन्दर बड़े पढ़े हाल थे जिनमें सुनहला और रुपहला काम बना हुआ था तथा होरे और जवाहरातकी मीनाकारी हो रही थी। विश्वविद्यालयकी सीमानोंके अन्दर अगणित और विशाल वृक्ष खड़े थे। पानीके झरने, फौव्वारे और नहरें जारी थीं जिनमें कमल के फूल अत्यन्त शोमा लिये फूलते थे। विश्वविद्यालयके व्ययके लिये सौ विश्वविद्यालयकी आय। गांव माफ थे। सब भिक्षुओं और विद्यार्थियोंको जीवनकी आवश्यक वस्तुयें और शिक्षा निःशुल्क मिलती थी। दूर दूरसे, यहांतक कि विदेशोंसे भी विद्यार्थी वहां शिक्षा पाने आते थे। परन्तु विश्वविद्यालयके नियम ऐसे कड़े