पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२८०

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२४६ भारतवर्षका इतिहास बहुत सुन्दर थे और वह गद्य-पद्य दोनों लिख सकता था। उस- की रचनाओंमेंसे कुछ एक नाटक शेष है, अर्थात् नागानन्द, रतावली और प्रियदर्शक । व्याकरणपरं भी उसने एक बड़ी विद्वतापूर्ण पुस्तक लिखी थी। उसके राजत्वकालमें वाण नामक संस्कृतका एक बड़ा प्रसिद्ध ग्रंथकार उत्पन्न हुआ। उसने राजा हर्पकी प्रशंसामें एक ऐतिहासिक पुस्तक लिखी है। हर्षफे समयमें चीनके साथ भारतका गहरा सम्बन्ध था। सन् ६४१ ई० में हर्पने चीन सम्राट्के दरवारमें एक दूतं भेजा जो सन् ६४३ ई० में एक चीनी दूतके साथ उत्तर लेकर वापस आया। यह चीनी दूत सन् ६३५ ई० तक वापस नहीं गया । इसके अगले वर्ष ही चीन-सम्राट्ने कुछ और दूत भारतको भेजे । इस यीचमें राजाका देहान्त हो चुका था । उसके मन्त्री अर्जुनने सिंहासन. पर अधिकार जमाकर इन चीनी दूतोंके मार्गमें बाधा दी और उनके साथके सिपाहियोंको मार डाला या फैद कर लिया, और उनकी सम्पत्तिको लूट लिया, परन्तु दूत रातको पचफर नेपालमें चले गये। तिब्बतके राजाने राज्यापहारी उस समय तिब्धतमें जो- राजा राज्य करता था उसकी । अर्जुनको पराजित किया । स्त्री चीनके राज-परिवारकी एक राजकुमारी थी। नेपाल भी तिव्यतको कर देता था। तिब्बतके शासकने बारह सौ चुनी हुई सेना चीनी दूतोंकी सहायताके लिये दो और नेपाल-नरेशने सात सहस्र सैनिकोंका दल उनके साथ किया । इस सेनाकी सहायतासेचीनी दूत भारतके मैदानों में उतरे और उन्होंने तिर्हत जिलेको विजय फरके तीन सहस्र फैदियोंफो मार डाला और दस सहस्र मनुष्योंको नदीमें डुयो दिया। मर्जुन माग निकला, परन्तु एक नयी सेना इकट्ठी करके दुयारा