पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२८९

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मासाम और काश्मीर योको बार्य सामाजिक संगठनमें प्रविष्ट करके हिन्दू बना लेते थे। मुसलमानोंने अनेक यार आसाम प्रान्तपर धापे किये परन्तु हर पार विफलमनोरथ हुए। पहला धावा यखतियार विन मुहम्मदके पुत्रने सन् १२०४ ई०में किया और वह मृतकार्य न हुआ। फिर दूसरी यार दूसरे घर्ष उसने धावा किया और वहां मारा गया। सम् १८१६ ई० में ब्रह्माके लोगोंने इस प्रान्तपर भधि- कार कर लिया । सन् १८२६ में यह प्रान्त अंगरेजी राज्यमें मिल गया। काश्मीरके सविस्तर वृतान्त कल्हनकी राजतर- काश्मीर ङ्गिणीसे मिलते हैं। इसका अंगरेज़ीमें भी अनुवादको चुका है। इस स्थानपर काश्मीरके इसिहासके कतिपय संक्षिप्त वृतान्त दिये जाते हैं। काश्मीर अशोकके राज्यमें मिला हुआ था। यह भी कहा जाता है कि कनिम्कने यौद्ध-धर्मकी दूसरी महासभा काश्मीरमें दी थी। रामा हर्पने भी काश्मीरपर धावा किया था और यह यहांसे महात्मा युद्धका एक दांत बड़े समारोहके साथ ले गया था। काश्मीरका वास्तविक इतिहास करकोट वंश से, जिसको हर्पके समयमें दुर्लभवर्द्धनने चलाया था, आरम्भ होता है। चीनी यात्री घनसाग्ने दो वर्ष काश्मीरमें काटे । महाराज ललितादित्यने जिसको चीन-सम्राटकी ओरसे खिलअत मिली थी, काश्मीरकी शक्तिको बहुत बढ़ाया। यह राजा ३६ वर्ष तक राज्य करता रहा। उसने कन्नौज नरेश यशोवर्मनको पूर्ण स्पसे पराजित किया और सिन्धु नदी के तटपर तिब्बतियों, भूटा- नियों और तुरकोंको जीता। मार्तण्डका प्रसिद्ध मन्दिर उसके स्मारक बनाया गया था। उसके भावशेष अवतक पड़े हैं। ललितादियका उपनाम मुक्कापीड़ भी था। इसके पुत्र विजयापीड़ या विनयादित्यने भी अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की और कन्नौजके राजा