पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२९३

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कन्नौज, पंजाय, अजमेर, दिल्ली, ग्वालियरकी राजधानियां २५६ में हका या वहिदह नदी, जिसका इस समय कोई नाम-निशान मौजूद नहीं, सिन्धुके मुसलमान शासकोंसे उसके राज्यको अलग करती थी। दक्षिण-पश्चिममें राजा गएकट उसका प्रतियोगी था। दक्षिणमें चन्देल राजपूतोंका जेजाकभक्ति राज्य था जिसको आजकल बुन्देलखण्ड कहते हैं। यह राज्य सम्भवतः उसका सिक्का मानता था। भोज अपने आपको विष्णुका अवतार समझता था और उसने भादि वराहकी उपाधि धारण की थी। भाजके चरित्रके सम्बन्धमें भोजके विषयमें बहुतसे उपा- ख्यान और कहानियां हिन्दुओंमें हिन्दू उपाख्यान परम्परासे चली आ रही हैं। ये उसकी चदान्यता और विद्यानुरागकी प्रशंसा करती हैं । सामा. न्यतः हिन्दुओंका यह विश्वास है कि राजा भोजके समयमें इस देशमें कोई भी मनुष्य अपढ़ न था। न उसके समयमें चोरी होती थी और न कोई भूखों मरता था। परन्तु एक राजा भोज मालवामें भी हुमा है। वह विद्यारसिक होनेके लिये विशेष रूपले प्रसिद्ध है। भोजका उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेन्द्र- महेन्द्रपाल । पाल हुमा। उसके शासन कालमें राज्यकी 'सीमायें पूर्ववत् वही रहीं जो भोजो समयमें थीं। भोजका गुरु राजशेखर नामक एक बड़ा प्रसिद्ध कवि था। उसकी रचनाओं- मेंसे कपूरनरी नामक एक नाटक उल्लेखनीय है। सन् १४० ई. तक महेन्द- द्वितीय भोज और महिपाल । पालके पुत्र द्वितीय भोजने और तत्पश्चात् उसके सौतेले गाई महिपालने शासन किया। महि- पलले समयमें कनौज-राज्यका अधःपात आरम हुआ। महि- पाटय पश्चात् देवपाल और जयपाल सिंहासनपर बैठे। परन्तु उनकाराध्य धीरे धीरे कम होता गया। .