पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३२५

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'सुदूर दक्षिणके राज्य २८७ प्रान्तकी भाषा तामिल थी और मदुरा उसका साहित्यिक केन्द्र था। उस समयतक मलयालम भाषा उत्पन्न न हुई थी। ईसाके संवतकी पहली शताब्दीमें रोमन पाएड्य राज्य । ऐतिहासिक प्लीनीने पांड्य राज्यका उल्लेख किया है। उस समय इस राज्यकी राजधानी मदुरा थी। परन्तु इससे प्राचीन कालमें वास्तविक राजधानी कोरकाईके स्थल- पर थी। यह अव तिनावली जिलेमें तानपणी नदीके तटपर एक छोटा सा गांव है। अपनी महत्ताके समयमें यह स्थान दक्षिणी सभ्यताका केन्द्र था और मोतियोंके व्यापारके लिये बहुत प्रसिद्ध था। जब राजधानी मदुराको स्थानान्तरित की गई तब भी कोरकाई अपने व्यापारिक महत्वके कारण प्रसिद्ध रहा। उसका नया बन्दरगाह जो कायलमें था शताब्दियोंतक पूर्वी व्यापा- रका प्रसिद्ध केन्द्र रहा । तेरहवीं शताब्दीमें मारफोपोलो एफसे अधिक बार इस बंदरगाहमें उतरा। वह यहांके लोगों और राजाको महत्तासे बहुत प्रभावित हुया। परन्तु जब कायलका बन्दरगाह कोरकाईके सदृश सूख गया तो पुर्तगालवालोंने अपने व्यापारका केन्द्र ट्यूटोकोरिणको बनाया । यह इस समय कुमारी अन्तरीप का प्रसिद्ध वंदर है। यहांसे लंका और पूर्वी तथा पश्चिमी सागर तटोंको जहाज जाते हैं। पाण्य राज्यका उले संस्कृतके प्रसिद्ध वैयाकरण कात्यायनके अन्योंमें मिलता है। कात्यायनका समय ईसाके पूर्व चौथी शताब्दी है। पाण्डय गव्य अति प्राचीन कालसे रोमवालोंके साथ व्यापार करता था और अनेक रोमन पुस्तकोंमें पांड्य देशके मिन्न मिन बंदरगाहों और मण्डियोंका वर्णन आता है। कहा जाता है कि पांज्य राजाने सन् २०३० पू० में बागस्टस सीजरके दरबारमें दूत भेजे। रोमन अन्यकार पोटर वीनसको इस बातका सन्देह