पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४२

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'भारतवर्षका इतिहास यहुत सी उपजातियां भारतके उत्तर-पश्चिमी दरों और उत्तरी रास्तोंसे इस देशमें प्रविष्ट हुई। उनमेंसे कुछ सभ्य भी थीं और अपने अपने धर्मकी अनुयायी थीं। परन्तु फिसीने यह चेष्टा नहीं की कि भारतीयों को अपने धर्मकी शिक्षा दें अथवा उनके अन्दर अपनी सभ्यता और अपने विचारोंको फैलाये। ऐतिहासिक कालमें भी लगभग आधी दर्जन इस प्रकारकी जातियोंने भारत- में प्रवेश किया और उनकी राजनीतिक सत्ता मट हो. जानेपर भी उनकी पर्याप्त संख्या हमारे अन्दर पचकर आत्मसात होगई। हमने उनको अपने धर्ममें मिलाकर अपने सामाजिक संग उनका अङ्ग यना लिया और उनकी योग्यता और उनके 'गुण- कर्म-स्वमाय'के अनुसार उनको भिन्न भिन्न पद दे दिये । भारतके इतिहासमें मुसलमान आक्रमणकारी हो ऐसे पहले जन-समूह थे जिन्होंने अपना विशेष धर्म और विशेष सभ्यता रखते हुए हम- को अपना धर्म और अपनी सभ्यता देनेकी चेष्टा की, भीर जो हममेंसे एक अच्छी संख्याफो अपने साथ मिलानेमें फतकार्य हुए। परन्तु. इतना होते हुए भी हिन्दू-जातिने सामूहिक- रूपसे कभी इस यातको स्वीकार नहीं किया कि मुसलमानी धर्म या मुसलमानी सभ्यता हिन्दू-धर्म या हिन्दू-सभ्यतासे उच्च- तर है। हिन्दुओंने राजनीतिक हार मान ली ( यद्यपि पूर्णरूप- से तो यह भी कभी नहीं मानी) परन्तु बौद्धिक या आध्यात्मिक पराजय कमी स्वीकार नहीं की और यही हिन्दुओंके बचायका कारण हुआ। हिन्दू-सभ्पतापर मुसलमानोंका इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि मुसलमानी सभ्यताका

प्रभाव।

प्रभाव किसी अशमें हिन्दुओंके रहन-सहनके ढंग और हिन्दू-सभ्यतापर हुमा परन्तु उससे 1