पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४३

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताको तुलना कहीं अधिक प्रभाव हिन्दुओंकी सभ्यताका भारतके मुसलमानों- पर हुआ। जव हम चीनी यात्रियोंके भ्रमण-वृत्तान्तोंको पढ़ते है मथवा हिन्दु-फालके नाटकों या उपन्यासोंको देखते हैं और उस समयके रहन-सहनफी रीतिकी वर्तमान समयके रहन-सहनके रीतिके साथ तुलना करते हैं तो हमें माश्चर्यजनक सादृश्य देख पड़ता है और यह साद्दश्य ही संसारके बड़े बड़े विद्वानों को यह कहमेपर विवश करता है कि हिन्दू-धर्ममें परिवर्तन यहुत कठिन है। हिन्दू धर्मकी तुलना यहुधा लोग ऐसे मगरसे करते हैं जो नाना प्रकारको मछलियों और जीवोंको पेटमें डालकर भी कमी अजीर्णको शिकायत नहीं करता। और अपने तत्व और वास्तविक स्वरूपको कभी नहीं यदलता। परन्तु इससेमी इंकार नहीं हो सकता कि पश्चिमी शिक्षाने भारतमें एक ऐसा जन- समुदाय उत्पन्न कर दिया है जो अपने देशके इतिहास और धर्मसे सर्वथा अनभिज्ञ है भीर प्रायः प्रत्येक विपयमें पश्चिमको प्रमाण मानता है । इस शिक्षित जन-समुदायके रहन-सहनके ढङ्ग और जीवन में उनके बौद्धिक और आध्यात्मिक पराजयकी असंख्य साक्षियां मिलती है। और यदि इस लहरको न 'रोका गया तो कुछ आश्चर्य नहीं कि सौ दो सौ वर्षमें (इससे कममें असम्भव है) हिन्दू-धर्म अपने वास्तविक स्वरूप और तत्वको यदलकर कुछ औरका मीर हो जाय। पश्चिमी शिक्षा प्रणालोसे - पाये भारतीय जन-समुदायका रहन-सहन,पठन-पाठन,उनके मुकाव । मस्तिष्ककी समस्तचेष्टायें और उनकी समीरीतियां पाश्चात्य होती जाती है। हमारा खान- पान हमारा परिधान, हमारे खेल कूदकी सामग्री, हमारे पढ़ने- पश्चिमी शिक्षा प्रणालीपर शिक्षा शिक्षा पाये हुए जन-समुदाय