पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४९

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३०७ प्रयुक्त नहीं किया। हमारा इससे यह तात्पर्य नहीं कि उन्होंने अपने धर्मके प्रचारमें कुछ सहायता नहीं की। घरन हमारा अभिप्राय इससे यह है कि उन्होंने कोई उपाय ऐसे ग्रहण नहीं किये जिनसे अधिकृत प्रदेशोंकी प्रजाका दिल दुखे। सामान्यतः हिन्दू-आर्य लोग इस सिद्धान्तके माननेवाले रहे हैं कि किसी प्रान्तकी रीति-नीति और शासन-पद्धतिको बलात्कार परिवर्तित करना चाहिये । इस सिद्धान्तपर यहांतक आचरण किया गया कि प्रायः विजित प्रदेशके राजपरिवारको भी अपने स्थानसे नहीं हिलाया गया और न उनका कानून बदलनेकी चेष्टा की गयी। केन्द्रसे सारे साम्राज्यपर शासन करनेका यत्न नहीं किया गया। महाराज चन्द्रगुप्त, महाराज अशोक, महाराज समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य, हर्ष और भोज आदि चक्रवर्ती राजाओं. के शासन-कालमें भी कैन्द्रिक शासन भारतके विशेष भागोंतक ही परिमित रहा और अवशेष भारतके विजित भागोंमें अपना अपना स्थानिक राज्य (लोकल सेल्फ गवर्नमेंट) रहा। वर्तमान यूरोपीय शक्तियां इस सिद्धान्तकी माननेवाली नहीं। उनका पैट इतना बड़ा है कि यह कभी नहीं भरता। उनकी लोलुपता इतनी है कि कभी पूरी नहीं होती। ये भूमण्डलके सभी भागों और सभी दिशाओं में अपना राज्य, अपना धर्म और अपनी सन्यता फैलाना चाहती हैं। साम्राज्यवादी मस्तिष्कवाले यूरो. पीय राजनीतिज्ञ यह समझते हैं कि ये समस्त संसारपर शासन करनेके लिये उत्पन्न हुए हैं और उनका यह पर्तव्य है कि ये सारे संसारको न केवल अपना धर्मदें घरन् अपनी सभ्यताको मी क्लात् और अत्याचारसे सारे संसारमें फैला दें। धम्माके इतिहासमें बौद्ध बौद्ध-धर्म पहला मिश्नरी प्रचारक या

मिश्नरी धर्म हुआ है। चौद्ध धर्म था। धर्म पहला .