पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६१

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हिन्दु मौर यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३१६ स्वार्थी हैं। उन्होंने यूरोपमें और सारे संसारमें अधर्म और पापका राज्य फैला दिया है। भारत और प्राचीन यूरोपके इतिहासके पाठसे ऐसा प्रतीत होता है कि भारतमें पञ्चीस सी वर्ष पहले यूरोपका लोकतंत्र जो प्रजातंत्र राज्य थे ये तत्कालीन राज्य। यूरोपके प्रजातंत्र राज्योंसे अनेक गुना अच्छे थे। उदाहरणार्थ, यूनागमें जो लोकतंत्र राज्य थे उनको नगर- लोकतंत्र (सिटो रिपब्लिक ) के नामसे पुकारा गया है। इन प्रजातंत्र राज्यों में फेवल कतिपय सहस्र मनुष्य स्वतंत्र होते थे जिनको राजपके कामोंमें सम्मति देनेका अधिकार था। शेप लाखौंको संख्यामे ये लोग थे-जिन्हें दास कदा जाता था। उन सहस्रों सम्मति देनेवालोंकी सम्पति समझे जाते थे। यही दशा पीके रोमन लोकतंत्र राज्योंकी थी और यही अवस्था मध्यका- लीन प्रजातंत्र राज्योंको थी । यूरोपके आधुनिक प्रजातंत्र राज्यों- का विकास गत दो सौ वर्षमें हुआ है। भारतमें कभी उस प्रकारके दासोंकी श्रेणी न थी जैसी फि यूरोप और अमरीका ठीक उन्नीसवीं शताब्दी तक रही। यमरीफामें दासत्व सन् १८६५ ई०में कानूनी तौरपर हटाया गया और इङ्गलैंडमें इङ्गलैंड- का प्रसिद्ध राजनीति-विशारद ग्लेटस्टोन भी दासत्वफा पक्ष. पोषण करता रहा। चन्द्रगुप्तके शासनकालमें जो यूनानी राज- दूत मगस्थनीज़ माया था उसने लिखा है कि उस समय भारतमें दासत्व बिलकुल न था। यह राजदूत यूनानमें दास-समाजको अवस्था और उसके विस्तारसे परिचित था। यह भारत और यूनानकी सामाजिक और राजनीतिक अवस्थाकी तुलना भली भांति कर सकता था । कुछ यूरोपीय ऐतिहासिक मगस्थनीजके इस कथनको असत्य ठहराते हैं और इसका कारण यह बताते 4