पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६६

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३२४ भारतवर्पका इतिहास. इतिहासमें यह लिखा है कि उन्होंने विशेष अवस्थाओं में उपजका .२५ भाग भी प्राप्त किया है। एक राजाके राजत्यकालके सम्बन्धमें कहा जाता है कि ग्राम्य विभागोंको मिलाकर राजस्व. का सर्पयोग. था। परन्तु यह प्रकट है कि राजस्वकी इस दरमें कुछ सुविधायें भी थीं। उदाहरणार्थ उन यनों और गोचर- भूमियोंपर कोई कर न था जो गांवके इलाके में सम्मिलित थीं। केवल खेती किये हुए क्षेत्र-फलपर ही उपजके अनुसार कर लिया जाता था। कुछ भी हो, इस कठोरताके वे बुरे परिणाम न होते थे जो थाजकल प्रकट होते हैं। इस समय अंगरेजी गवर्नमेण्ट नियम रूपेण स्वामित्व (मालिकाना ) का लगभग पचास प्रतिशत वसूल करती है। कुछ क्षेत्रोंमें इससे अधिक और कुछमें इससे कम। ग्राम्य राजस्य ( Cess ) इसके अति- रिक्त होते है। गैरमौरूसी मुजारियोंसे मालिक लोग कुछ अवस्थाओंमें .५ और प्रायः . घंटाई लेते हैं। कदाचित कहीं .२५ भी लेते हैं। अतएव इन भूमियोंमें अगरेजी गवर्नमेण्टका भाग.२५ या .१६ या .१२५ हुआ। परन्तु हमारी सम्मति यह है कि कोई देश सरकारके अधिक कर लेनेसे कङ्गाल नहीं होता यदि उसकी सारी माय उसी देशमें व्यय हो। इसके अतिरिक्त यह भी स्वदेशसे बाहर जाने और विदेश- स्मरण रखना चाहिये कि से स्वदेशमें आनेवाले मालपर कर । आजकलकी गवर्नमेण्टे मिन्न भिन्न रूपोंमें नाना प्रकारके इतने टैक्स लेती हैं कि यदि उन सब- को इकट्ठा किया जाय तो वे एक बड़ी भारी संख्या बन जाते हैं। आयात और निर्यात मालपर जो कर इस समय कुछ यूरो- पीय और अमरीकन देशोंमें लिये जाते हैं ये उन फरोंसे अनेक गुना अधिक है जो हिन्दू-गंपर्नमेएटोंके राजत्यकालमें लिये जाते