पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६८

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३२६ भारतवर्षका इतिहास ऐसा प्रतीत होगा कि वहां मजदूरी करनेवाले स्त्री-पुरुप उन निर्जीव यन्त्रोंके दास है, जिनको मालिकोंने धन इकट्ठा करनेके लिये लगाया है। इन उद्योगशालाओं में न नियोंका सतीत्व सुरक्षित है, न उनका सौन्दर्य और शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है और न वालकोंको वाल्यकालका आनन्द आता है। ये सब एक यन्त्रके भाग है और दिन-रात रोटी और कपड़ेके लिये भारवाहक पशुमोके सदृश काम करते हैं। वर्तमान सभ्यता. ने मनुष्य-सृष्टिकी एक प्रचुर संख्याको श्रमजीवियों (मजदूरों) के दर्जेतक गिरा दिया है। इस समय यूरोप और अमरीका श्रमजीवी अधिक हैं और आर्थिक दृष्टिसे स्वतन्त्र नागरिक बहुत कम। किसी जातिकी आर्थिक स्मृद्धिका अनु- मान उस जातिके व्यापारिक आंकड़ों और गणनाओंसे या उस जातिकी मजदूरीकी दरसे 'नहीं लग सकता, क्योंकि मजदूरीकी दरका निर्भर जीवनकी 'आवश्यकताओंके मूल्यपर है। जातिकी आर्थिक स्मृद्धिका अनु- मान इस वातसे होता है कि उस जातिके सर्वसाधारणको आवश्यक भोजन और वस्त्र सुगमतासे और ऐसी दशामें मिल जाता है या नहीं कि जो दशा उनकी महत्ताको गिरानेवाली न हो। उद्योग-शालाओं (फैक्टरियों) में मजदूरी मानवी महत्ताको यनाये नहीं रखती। सहस्रों मनुष्योंका भाग्य और उनका भोजन वस्त्र कारखानाके एक स्वामीके हाथमें होता है। वह स्वामी जब चाहता है बिना सूचनाके इन सहस्रों प्राणियोंको आजी- धिका-हीन कर देता है। यह अवस्था सन्तोपजनक नहीं है। .. हिन्दुओंको प्रायः यह उपालम्म दिया जाता है कि उन्होंन.कोम करनेके माहात्म्यको बहुत जातियोंकी स्मृद्धि- .की पहचान। श्रमकी महत्ता ।