पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३७१

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हिन्दू और यूरोपीय संम्यताकी तुलना में वर्तमान यूरोपीय सभ्यताका भाव पौराणिक सभ्यतासे अनेक गुना अच्छा है। समाजमें सम्मान और पदका निरूपण मनुप्यके व्यक्तिगत चरित्रसे होना चाहिये न कि उस कामसे जिससे वह रोटी कमाता है। प्राचीन हिन्दू-इतिहासमें भी हमको इस बातकी साक्षी मिलती है कि जब कभी नीची जातियोंमे कोई मनचला योग्य मनुष्य उत्पन्न हुआ तो वह अपनी व्यक्ति- गत योग्यतासे समाजमें उच्चसे उच्च पदतक पहुच गया। हिन्दू-कालके यहुतसे राजघराने नीव जातियोंके मनुष्योंने चलाये और उनको समाजने निस्संकोच होकर क्षत्रियों में परिगणित कर लिया। बहुतसे मनुष्य छोटी जातियोंमे उत्पन्न होकर ब्राह्मण ही नहीं वरन् ऋपि बन गये। अछूत जातियोंफा अस्तित्व हिन्दू- सभ्यतापर एक कलङ्क है। परन्तु इसके मूलमें मजदूरीसे घृणाका भाव नहीं, वरन् वह स्वच्छता और पवित्रता है जिनको हिन्दुओंने असाध्य सीमा- ओतक पहुचा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ एक 'प्रकारके श्रम और मजदूरीको साधारण समाज घृणाको दृष्टिले देखने लगा। माता जिस समय अपने बालकका मल धोती है तो कोई भी व्यक्ति उसको घृणाकी दृष्टिले नहीं देखता । परन्तु भटीको सारा समाज अछूत ठहराकर एक प्रकारकी घृणाका प्रकाश करता है। यदि समाजको भड्डियोंकी आवश्यकता है तो उसे उचित है कि इन लोगोंको घृणाकी दृष्टिसे देखनेके स्थान उनका सम्मान करे और उनके कामको आदरसे देखें। छूत-छात हिन्दुओंमें फच प्रचलित हुई और किस प्रकार इसमें उन्नति होती गई, इस प्रश्नपर अभी इतिहास पर्याप्त प्रकाश नहीं डालता। परन्तु यह प्रकट है कि हिन्दू राजत्वकालमें इस दर्जे की छूत-छात... अछुत जातियों का अस्तित्व ।