पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९५

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+ . हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना धुरा है और माधुनिक सभ्यतापर एक भारी फलङ्क है। इन व्यापारिक नियमों के प्रभावमें आकर प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यकि- को लूटनेकी चिन्तामें रहता है और अनेक प्रकारको व्यापारिक धोखेबाजियां और अनीतियां समाजमें घुस आती हैं। हिन्दू समावसे मेल-प्रिय हैं। समस्त धार्मिक भेदोंके संसारके न्यायप्रिय मनुष्य इस यातको स्वीकार कारण अत्याचार। करते हैं। परन्तु कुछ लोग यह समझते हैं कि उनका यह मेल-प्रिय स्वभाव उनकी राजनीतिक विवशता और दासतासे उत्पन्न होता है । यह विचार सर्वथा मिथ्या है। हिन्दू सदासे धार्मिक स्वतन्त्रताके पक्षपाती हैं। उन्होंने कभी किसी कालमें धार्मिक भेदोंको शत्रुता, वैर, या विरोधका साधन नहीं पनाया। वैदिक कालसे लेकर आजतक हिन्दुओंने धार्मिक स्वतन्त्रताकी दुदुभो बजायी है और उसीके अनुसार आचरण किया है। हिन्दुओंकी दृष्टिमें प्रत्येक व्यक्तिको अपने ढङ्गसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति करनेका अधिकार और स्वत्व है। यही कारण है कि संसारका कोई भी ऐसा धार्मिक विचार नहीं जो हिन्दु धर्म में नहीं पाया जाता । इस विषयमें भर्वाचीन जगत् हिन्दू-धर्मको कुछ नहीं सिपा सकता। संसारके सर्वो- त्तम धार्मिक नियम आर सिद्धान्त किसी न किसी रूपमें हिन्दू धर्म में मौजूद हैं। ईश्वरका एकत्व भी उच्च कोटिका है. और प्राकृतिक तत्त्वोंकी पूजा, प्रतिमा-पूजन मोर नास्तिकपनकी भी पराकाष्ठा है। हिन्दू न केवल मनुष्यमात्रको अपना बंधु समझते हैं घरन् वे सर्व प्राणियोंको दया, अनुकम्पा और मित्रताका पात्र समझते हैं। उनके धर्ममें नास्तिक लोगोंको भी ऋषि-पदवी दी गयी है और प्रत्येक व्यक्तिके धार्मिक विश्वास और भावनाको सम्मानपूर्वक स्मरण करना सिपाया गया है। बौद्ध और जैन