पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४०२

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भारतवर्षका इतिहास 3 इतिहास लिखा जायगा। इस भागमें अभी संक्षिप्त रूपसे हम हिन्दुओंके प्राचीन राजनीति-शास्त्र के सिद्धान्तका वर्णन करेंगे । महाभारतके शान्तिपर्वमें यह कहा गया राजनीति विज्ञानका है कि यदि राजनीतिकी विद्या लुप्त हो जाय 'महत्व। तो तीनों वेद और शेष सब प्रकारके धर्म नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार मानव सूत्रों में भी राजनीतिको । उन तीन विद्याओंमेंसे यताया गया है जिनका ज्ञान प्रत्येक मनुष्य के लिये आवश्यक है । वे तीन विद्यायें ये हैं वेद, अर्थ- शास्त्र और राजनीति । वृहस्पतिके सूत्रोंमें भी विशेष रूपसे दो विद्यामोंका उल्लेख है अर्थात् अर्थशास्त्र और राजनीति। औश- नस सूत्रोंमें तो राजनीति-विद्याको ही विद्या कहा गया है क्योंकि विद्याकी शेप सारी शाखाओंका आधार इसीपर है। हिन्दू- शास्त्रों में राजनीतिको प्रायः दण्ड-नीति कहा गया है। महा- भारतके शान्तिपर्व में दण्ड-नीतिकी यहुत महिमा वर्णन की गई है और कहा गया है कि स्वयं ब्रह्माने इस विद्याकी शिक्षा दी। स्वयं राजनीतिकी पुस्तकोंमें भी दण्ड-नीतिका महत्व भली भांति वर्णित है । हिन्दुओंके साहित्यमें कोई पुस्तक भी ऐसी न मिलेगी जिसमें देशकी वर्तमान राजनीतिक अवस्थाओंका थोड़ा बहुत उल्लेख महो। धर्मशास्त्रोंमेंसे प्रायः प्रत्येक शास्त्रमें राज- मोतिक विपयोका वर्णन है और राज्यप्रवन्धके सम्बन्धमें सवि. •नरामयोपित सिधातोपो पटक विधे यास्या रुपम यात कुछ विवारसाईहिन्द हिना नपर षौ पछी सस्तक प्रकाशित की हैं। पूर्वाग्यरी 2 समापदरेवी सापाम लिपी गई। उसनेम पुषीको शिव सोमियामोह तमा विद्यमा पापक पिस परिद नियम पपि हमने दूसरे विधानों देशों भी सहावा कोरेर मारा एक बार बार प्रमपनाए रोपामार त "पब्लिक एडमिनिस- मग धिr (सन् १.सो. A