पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४११

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हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति है जिसके सिपुई देशका प्रबन्ध हो । इसमें वे समस्त समितियां मिली हुई थी जो लोकतन्त्र प्रान्तोंमें राज्यका कार-यार किया करती थीं। हिन्दू-इतिहासमें ऐसे दृष्टान्त बहुत मिलते हैं जहाँ भिन्न भिन्न प्रदेशोंमें कोई राजा न था और शासनको वागडोर निर्वाचित समितियों, पञ्चायतों, विद्वानों और रईसोंके हाथमें थी। गवर्नमेस्ट के सम्बन्धमें जो उपदेश हिन्दू शास्त्रों में लिखे हैं वे उन सब प्रकारकी शासक-मण्डलियोंपर लागू थे । सारांश यह कि राजासे तात्पर्य शासन अर्थात् गवर्नमेण्टसे था न कि केवल उस व्यक्तिमे जो किसी विशेष समयमें किसी विशेष प्रदेशका राजा या शासक हो । राजसभाओंका वर्णन । हिन्दू-इतिहासले मालूम होता है कि सिकन्दरके समयमें भी भारतके यहुतसे भाग ऐसे थे जिनमें कोई भी राजा राज्य न करता था और जहा किसी न किसी रूप में राजसमायें राज्य करती थों। वैदिक साहित्यमें इस यातके पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं। महाभारतमें भी ऐसे राज्योंका उल्लेख है जिनमें कोई एक व्यक्ति राजा न था। ईसाकी पांचवीं शताब्दीतक

भारतके भिन्न भिन्न भागोंमें थोडे बहुत ऐसे राज्य रहे। ये
राजसमायें भिन्न भिन्न प्रकारकी थीं।

सिकन्दरफे आक्रमणके समय पचायके बहुतले राज्य लोक-

तन्त्र नियमोंपर प्रतिष्टित थे। उदाहरणार्थ इतिहासमें लिखा

है कि मेलोई (माल) जातिने जय सिकन्दरको अधीनता । स्वीकार की तो उन्होंने सिकन्दरसे यह कहा कि हमारी जाति स्साघोन और स्वतन्त्र है और हम सदासे स्वतन्त्र रहे हैं। इसी प्रकार जन सिकन्दरने विसा नगरको विजय किया तो उस ?

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