पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१२

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मारतवर्षका इतिहास. ) समय उस नगरमें प्राचीन यूनानी नगरोंकी शैलीपर तीन सौ मनुप्योंकी एक सभा शासन करती थी। सिकन्दरने नगरवालों से प्रार्थना की कि इन तीन सौमसे एक सौ उसके सिपुर्द कर दिये जाय। इसके उत्तरमें नगरवालोंने कहा-“राजन् ! यदि नगरके सो विद्वान चले जायँगे तो हम किस प्रकार अपने नगर- का सुप्रयन्ध करेंगे।" हम किसी दूसरे स्थलपर लिख चुके हैं कि युद्धके समय भारतमें तीन प्रकारके राज्य थे-(१) व्यक्तिगत राजाओंके (२) परिमित निर्वाचित जनसमूहोंके जिनको अगरेजीमें ओली. गार्की (अल्पजन-सत्ताक राज्य ) कहा जाता है, (३) प्रजातन्त्र । प्रजातन्त्र राज्यमें ऐसा प्रतीत होता है कि जातिके सारे स्तम्भ सम्मिलित होकर एक जन-समूहके द्वारा अपना कारो- वार करते थे। इस जन-समूहको समिति कहा जाता है। इसी प्रकार वौद्धों और हिन्दुओंके साहित्यमें कई ऐसे दृष्टान्त मिलते हैं जहां युद्ध और शान्तिके समस्त विपयोंपर सामान्य समितिमें विचार होता था और राज्यको परराष्ट्र-नीतिका निश्चय सय लोगोंके सामने किया जाता था। अध्यापक रिस- डेविड्सने अपनी पुस्तक "धुधिस्ट इण्डिया में इस प्रकारके दृष्टान्त दिये हैं। यह बात प्रकट है कि इस प्रकारका लोकतन्त्र राज्य केवल छोटे छोटे प्रदेशोंमें ही हो सकता था।। ये उसी प्रकारफे लोकतन्त्र राज्य थे जैसे कि प्राचीन रोम और प्राचीन यूनानमें पाये जाते थे। इन राज्योंमें ये सामान्य समायें प्रति. निधियोंकी विशेष संख्या जातिकी वृहद् सभाम निर्वाचित करती थों-ये प्रतिनिधि साधारण राज्य-प्रबन्ध करते थे। परन्तु समी महत्वके प्रश्न साधारण समामें प्रस्तावित होते । जब ये लोकतन्त्र राज्य किसी कारणसे राजाको चुननेकी इच्छा