पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१३

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३७१' हिन्दुओंको राजनीतिक पद्धति करते थे तब वह राजा भी इन सभाओंमें ही निर्वाचित हुना करता था। दूसरे प्रकारके राज्य वे थे जिनमें ये साधारण समाये अपने से एक विशेष संख्याको मनोनीत करके राज्यके यावतीय विषयोंको उनके सिपुर्द कर देती थीं। इस बातका कोई पता नहीं चलता कि निर्वाचनका ढंग क्या था । लिखित मत-प्रदानका कोई उल्लेख पुस्तकोंमें नहीं मिलता। और यह सम्भव है कि सहमत न होने की अवस्थामें पांसा फेंककर निर्णय किया जाता हो। कुछ भी हो इस विषय- पर सम्मति प्रकट करनेके लिये अभीतक कोई सामग्री मालूम नहीं हुई। एकतन्त्र राज्यमें भी कई प्रकारकी सभायें एकतंत्र शासनमें होती थीं। सामान्यतः शास्त्रोंमें तीन प्रकारकी राजसभायें। समाओंका उल्लेख किया गया है-अर्थात् राजसभा, विद्यासभा और धर्मसमा। परन्तु इनके अतिरिक भी और अनेक प्रकारको सभायें नियुक्त की जाती थीं। उदा- हरणार्थ मन्त्रि-परिपद जो आधुनिक प्रिवी कौंसिलके स्थानमें थी, अथवा न्याय-सभायें जहां अभियोगोंका निर्णय किया जाता था,' अथवा श्रेणी-सभायें जहां कला-कौशल और व्यापारके, विषयोंका निपटारा होता था, अथवा वे कमेटियां जो भिन्न मिन्न विभागोंके प्रयन्धके लिये राज्यकी ओरसे नियत होती थीं। न बड़ी बड़ी सभामोंके अतिरिक्त अनेक प्रकारकी उपसभायें भी होती थी। राज्य-महासमाका अधिवेशन प्रतिदिन राजसभा । होता था। इसमें लोगोंकी शिकायतें सुनी ती थी। इसी समाके सामने अधीनस्थ अदालतोंके निर्णयोंके रुद्ध अभियोगोंकी अपीलें भी सुनी जाती थीं। इस सभाके" ,