पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१७

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$ 1 हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति 'माशामोंका उसी प्रकार पालन फरे जैसे पुत्र पिताकी या सेवक खामीकी भाशा मानता है। नीति-वाक्यामृतमें प्रधानको राजाका पिता और पुरोहितको उसको माता कहा गया है। इन म'त्रियोंके अतिरिक्त अर्थ-सचिव और कोपाध्यक्षका भी यदुत उच्च स्थान था। अर्थ-शास्त्र में इन उच्च कोटिके मधिकारियों- को महामात्र कहा गया है। मर्थसचिव या कलर जनरलका काम यह था कि यह नगदी, बहुमूल्य पत्थरों, सोना-चांदी और अन्य आभूषणोंकी रक्षा करे और राज्य सम्पति या राजकीय कोपमें किसी प्रकारका गोलमाल या गगन न होने दे। युद्ध और शान्तिके मन्त्रीका काम था कि यह दूसरे राष्ट्रोंसे पत्र-व्यवहार करके परराष्ट्र-नीतिका निरीक्षण करे। हिन्दू-शास्त्रों में सेनाके मधिकारियोंको मन्त्री बनानेका निषेध है। पर कुछ शास्त्रोंमें सेनापतिको इस बंधनसे अपवाद स्वरूप रखा गया है। शुक- नीति और नीति-वाक्यामृतमें उसका नाम मंत्रियोंकी सूचीसे वाहर रक्खा गया है। कभी कभी एक पृथक मन्त्री राजकीय मुद्राके अध्यक्षके रूपमें नियत किया जाता था। इस कारणसे उसका पद बड़े गौरव और महत्वका समझा जाता था। प्रत्येक मत्री अपने अपने विभागका ज़िम्मेदार था, और सारे मंत्री मिलकर सम्मिलित रूपसे राज्यके प्रबंधके उत्तरदाता थे। चाणक्य मत्री-परिपद्में और मंत्रिमण्डलमें, जिसको आज- कल केबिनट कहते हैं, भेद करता है, अर्थात् इन दोनों समाओं. को पृथक् पृथक् बताता है। मंत्री अपने अपने कर्तव्योंको पूरा मंत्रियोंका उत्तरदायित्व। करनेके लिये न केवल राजाके सामने वरन् जनता के सामने भी उत्तरदाता समन्छे जाते थे। हिन्दू-ति- हासमें अनेक ऐसी घटनायें माती है कि मंत्रियोंने राजाकी