पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१८

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३७६ भारतवर्षका इतिहास

. आशा नहीं मानी और यह कहकर टाल दिया कि वह आशा राज्य या प्रजाके लाभके लिये न थी। कई स्थानोंपर यह लेख मिलता है कि राजाकी भूलकी जवायदेही मंत्रीपर है।ा नसाङ्ग लिखता है कि सरखती (2) के राजा विक्रमादित्यने आशा दी कि उसके कोपसे पांच लाख स्वर्ण-मुद्रायें दरिद्रों और दीनोंको प्रतिदिन घांटी जाय। इसपर कोपाध्यक्षने राजासे यह कहा कि "ऐसा करनेसे आपका कोप रिक्त हो जायगा और नये कर लगाने पड़ेंगे जिससे प्रजामें असन्तोष फैलेगा। आपके दानकी • तो लोग प्रशंसा करेंगे परन्तु मेरा अपमान होगा।" इसी प्रकार अशोकके मंत्रीके सम्बन्धमें एक कहानी है। राज्यवर्धनकी हत्या- हो चुकनेके पश्चात् उसके मंत्रियोंने स्वीकार किया कि उसकी

हत्याका उत्तरदायित्व उनकी गर्दनपर है क्योंकि उन्होंने राजाको

शत्रुके शिविरमें जानेसे न रोका। • महामंत्रीका स्थान । महामंत्रीका स्थान राजासे उतरकर सबसे ऊंचा गिना जाता था। वरन भरद्वाज तो राजाको तुलनामें भी महामंत्रीको अधिक उच्च स्थान देता है। चन्द्रगुप्त प्रतिदिन सवेरे उठकर अपने महामंत्री चाणक्यके पैर छूता था । संस्कृत-साहित्यमें इस यातके पर्याप्त प्रमाण मिलते हूँ कि मंत्री प्रायः बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। चाणक्यने लिखा है कि किसी मत्रीको विलासिताका जीवन नहीं व्यतीत करना चाहिये । मुद्राराक्षसमें चाणक्यके विषयमें लिखा है कि पह स्वयं एक पुराने गिरे हुए झोंपड़ेमें रहता था। भारतके इतिहासमें असंख्य ऐसे उदाहरण हैं जहां महामंत्रियोंने अपने कर्तव्योंका पालन करने में अतीव जोखिमके काम किये। परन्तु इससे यह आवश्यक नहीं ठहरता कि प्राचीन कालमें सब ही मन्त्री, सब ही राजकर्मचारी ऐसे ही भद्र, शुद्ध, पवित्र और ईमानदार होते थे।