पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. हिन्दुओंको राजनीतिक पद्धति दएड दिलाना। गौतम-सूत्रोंमें यह लिखा है कि यदि 'किसीका चुराया हुआ माल पकड़ा न जाय तो राजाका कर्तव्य है कि उसका मूल्य अपने कोपसे दे दे। अग्निपुराणमें भी ऐसी ही आशा है। सम्भवतः यही कारण है कि मगस्थनीजके दौत्य कालमें और चीनी पर्यटकोंके समयमें इस देशमें सामान्यतःचोरी बहुत कम थी। अधिक सम्भव है कि इसी कारणसे कई बार चोरीके लिये कठोर दण्ड दिये जाते थे। पुलिसके साथ मिलता- जुलता एक दूसरा विभाग था। इसको भेदिया विभाग कहते हैं। इसके लिये आजकल सी० आई० डी०का शन्द प्रयुक्त होता है। चाणक्य लिखता है कि इस विभागके लिये अत्यन्त निष्कपट और विश्वास्य अधिकारी चुने जाने चाहिये । जानकारीका संग्रह करनेके लिये साधन भिन्न भिन्न होने चाहिये, ताकि एक अधि- कारी जो सूचना दे उसकी सदी दूसरे साधनोंसे हो सके। मगस्थनीज सिद्ध करता है कि इस विभागमें अत्यन्त योग्य और अत्यन्त विश्वासपान मनुष्य नियुक्त किये जाते थे। चाणक्य- नीति और शुक्र-नीतिके रचयिता लिखते हैं कि प्रत्येक विभाग- 'का प्रबंध समितियोंके सिपुर्द होना चाहिये । तदनुसार चन्द्रगुप्त- के समयमें इन सभी विभागोंकी निरीक्षक समितियां थीं। राज- कर्मचारियोंके चुनावके सम्बन्धमें योग्यताके अतिरिक्त ईमानदारी और चाल-चलनका यहुत लिहाज़ किया जाता था। केवल परीक्षा पास कर लेनेपर अफसर नहीं रक्खे जाते थे। इस प्रकार इसी विचारसे चाणक्यने जो वेतनोंका मान (स्कोल) बताया है यह ऐसा है जिससे किसी व्यक्तिको घूस लेनेकी आवश्यकता न होती थी। चाणक्यने चैतनोंका मान यह लिखा है:- (१) गुरु, पुरोहित, राजाध्यापक, महामन्त्री, सेनापति, युध- राज, राज-माता और महारानी :-