पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतवर्षका इतिहास इन अवस्थाओं में स्वभावतः ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्यों हिन्दुओंने इतनो यार भिन्न भिन्न आक्रमणकारियोंसे हार खाई ? जय हम सीमान्तके उस भागको देखते हैं जो पेशावर और चनायके बीच स्थित है, तो हमें आश्चर्य होता है कि किस प्रकार भारतीय योद्धाओंने सिकन्दरको या अन्य आक्रमणकारियोंको इस प्रदेशमेंसे गुज़रने दिया। इसके दो उत्तर हो सकते हैं। एक तो यह कि जाति-पांतिके विभागने देशको रक्षाको फेवल एक श्रेणीके सिपुर्द कर दिया था और उस श्रेणीके परास्त हो जाने या साहस छोड़ पैठनेपर सारा देश इकट्ठा होकर लड़नेके योग्य न रहता था। दूसरे यह कि वाह्य आक्रमणकारी केवल उसी समय सफल मनोरथ हुए जय स्वयं भीतरी राजाओंमें बहुत कुछ परस्पर 'फूट और लड़ाई-झगड़ा था। पचायकी भिन्न भिन्न जातियोंने सिकन्दरका भली भांति सामना किया और कई स्थानोंपर उसकी सेनाके दांत खट्टे किये । परन्तु आरम्भमें ही कई देशद्रोही स्थानीय राजा उसके साथ मिल गये। उन्होंने उसको बहुत सहायता दी। फिर भी रावी पार होते ही उसोको पीछे मुड़नेकी आवश्यकता अनुभव हुई। इसी प्रकार भारत के इतिहासमें जय फभी आक्रमणकारी आये हैं तो उन्होंने भीतरी फूटसे लाभ उठाया है। जर कैन्दिक शासन प्रवल था और देशमें एकता थी तय भारतमें आनेका किसीको साहस नहीं हुआ। सार्वजनिक इमारतें । किसी देशके सभ्य होनेकी एक पहचान यह है कि उस । देशमें कितने नगर है। नगर प्रायः व्यापार और कला-कौशलके केन्द्र होते है और व्यापार तथा शिल्पमें उन्नति सभ्यताके प्रबल चिह्नोंमेंसे एक है। यद्यपि यह यात संदिग्ध है कि लण्डन और