पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४५३

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४१० भारतवर्षका इतिहास तुर्किस्तानके पूर्व की ओर एफ और मध्यवर्ती समुद्र था जिसको एशियाई भूमध्य सागरका नाम दिया जाता है। मानों प्राचीन सप्त सिन्धुके चारों ओर चार समुद्र थे। सप्त सिन्धु प्राचीन संस्कृतमें उस प्रदेशको कहा गया है जो सिन्धु, सरस्वतो और पक्षावकी पांचों नदियोंसे सींचा जाता था और जिसको आज. फल पक्षाय कहा जाता है। (२) उस समयमें दक्षिण भारत एक बड़े महादेशका भाग था। यह महादेश ब्रह्मासे आरम्भ होकर पूर्वी अफ्रीकाफे तटतक पहुचता था और अधिक सम्भव है कि दक्षिणमें यह आस्ट्र- लियाकी सीमातक था। एक यूरोपीय विद्वान ब्लेंफ़ोर्डने इस महादेशका नाम इण्डोमोशियानिक रक्खा है। उसका विचार है कि भूकम्प आदिके कारण यह सारा महादेश उलट पलट हो गया और भारतका वह आकार बन गया जो इस समय है। (३) सप्त सिन्धुके विषयमें वैज्ञानिक यह मानते हैं कि यह भूखएड उन प्रदेशोंमेंसे है जहां पहले जीवधारी उत्पन्न हुए और जहां मनुष्यका आविर्भाव हुआ और चूंकि यहां आर्य-जातिके लोग ऐसे कालसे रहते हैं जिसका निरूपण करना प्रायः अस- म्भव है इसलिये इसी प्रदेशको उनका आदिम स्थान समझना चाहिये । इसी प्रकार द्रविड़ लोग दक्षिणी महादेशके अधिवासी है। ये कभी मध्य एशियासे नहीं आये । (४) ऋग्वेदकी आन्तरिक साक्षीसे श्रीयुत दास यह परिणाम निकालते हैं कि ऋग्वेदके समयमें पञ्जावके चारों ओर समुद्र था। जैसा कि ऊपर फह चुके हैं। पञ्जावकी पांचों नदियां और सिन्धु यरव सागरके उस भागमें गिरती थीं जो राजपूताना सागरसे मिला हुआ था। गङ्गा और यमुना पूर्वी समुद्रमें गिरती थीं। सरस्वती उस समय एक बहुत बड़ी नदी थी। वह हिमालयसे . .