पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४५७

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४१४ भारतवर्षका इतिहास 5 ३. . किये हैं। इसीलिये पुस्तकमें वह एकत्व नहीं पाया जाता जो एक ही प्रत्यकारके लेखमें हुआ करता है इस पुस्तकमें उस दलके दूसरे प्रायः ये निवन्ध उस दलके लिखे विचार हैं जो भारतकी हुए हैं जिसकी सम्मतिमें प्राचीन सभ्यतामें मैलिकता भारतकी सभ्यतामें जो कुछ भी सम्मान । और गौरवके योग्य है यह अधिकतर नहीं देखता। वाहरसे सीखा गया है। यह सिद्ध करनेका यन किया गया है कि यहुत प्राचीन कालसे भारत भिन्न भिन्न सभ्य जातियोंके अधीन रहा। इसलिये सभ्यताके जितने भी अङ्गोंमें इस देशने उन्नति को उसके मूलतत्त्व उसने वाहरसे लिये। उदाहरणार्थ, अन्तिम परिच्छेदमें अध्यापक मार्शलने यह प्रतिज्ञा की है कि भारतकी ललित कलाओंमें जो कुछ सराहनीय है वह यूनान, ईरान और बेबीलोनियाले सीखा गया है। हमारे इस लेखका यह तात्पर्य नहीं कि हमारी इष्टिमें किसी जातिका दूसरी जातिसे कुछ सीखना चुरी बात है अथवा इससे उसकी महत्तामें कुछ अन्तर आता है। न इससे यह समझ लेना चाहिये कि हमारी सम्मतिमें भारतकी प्राचीन सभ्यतापर कभी कोई वाह्यप्रभाव नहीं पड़ा। जिन यूरोपीय अन्वेषकोंने भारतको प्राचीन सभ्यतापर सम्मति प्रकट की है उनको सामान्यतः दो दलों में विभक्त किया जाता है। एक वह दल है जिसकी सम्मतिमें भारतकी सभ्यता भारतीयोंके मस्तिष्कसे निकली है। उसकी नीं सब भारतीय, हैं और उसके भवनके समस्त महत्तायुक भाग स्वयं भारतीयोंके पनाये हुए हैं। दूसरा दल यह है जिसके विचार केम्ब्रिज विश्व- विद्यालयके इस इतिहासमें प्रकट किये गये हैं।