केम्ब्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४२३ दृश्य नहीं पाये जाते। ठेठ पक्षावमें यकालमें केवल हलकी हलकी फुहारें पड़ती है। उसके विस्तृन मैदानों में वे पहाड़ नहीं .मिलते जिनपर वैदिक भारतीयोंने अपनी कवि-पाल्पनाका व्यय किया ।" प्रत्येक पक्षाबी यह कह सकता है कि यह कथन सारे- का सारा मिथ्या है। रावलपिण्डीले कतिपय मीलके अन्तरपर हिमालयकी गिरिमाला है। यह निरन्तर आसाम तक चली जाती है । डलहौज़ी और धर्मशालाकी चोटियां मैदानसे बहुत निकट हैं। इन सब पर्वतोंमें बरसात बहुत ज़ोरकी होती है । बादल खूब गरजते हैं। बिजली खूब चमकती है और गिरती भी है। थानेश्वर या अम्बालाके प्रान्तमें वर्षा उससे अधिक नहीं होती जितनी कि ठेठ पक्षावमें होती है। पृष्ठ ८० पर एक झील शर्यणावत्तका उल्लेख है। अध्यापक महाशयके मतमें यह थानेश्वरके निकट स्थित थी। परन्तु मध्या- पक हिल एडकी सम्मतिमें यह काश्मीरकी 'घूलर डल' ही थी। यदि यह पिछला कथन सत्य है तो इसका यह अर्थ है कि ऋग्वेदके पियोंको काश्मीरका शान था जहां वर्षा निहायत ज़ोरोंसे होती है और बिजली खूब कड़कती है । हमारी सम्मतिमें यह सारा विवाद मिथ्या है। पृष्ठ ८५ और ८६ पर "दास" शब्दसे तात्पर्य “गुलाम” लिया गया है और परिणाम यह निकाला गया है कि वेदोंमें दासोको व्यक्तिगत सम्पत्तिमें गिना गया है। परन्तु इस कथनके सम- र्थनमें किसी मन्त्रका प्रमाण नहीं दिया गया। पृष्ठ ८७ पर शब्द 'वेकनाट' के विषयमें लिखा गया है कि जो लोग यह समझते हैं कि इस शब्दसे किसी क्षेत्रीलोनियन' शब्दका पता चलता है ये भूल करते हैं। इसका इससे अधिक युक्तिसंगत मूल “यीकानेर" प्रतीत होता