पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४६९

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"४२६ भारतवर्षका इतिहास (E) यद्यपि वैदिक आर्य अपने अतिथियोंके लिये वैलका बलिदान करते थे परन्तु गायको वे भी पवित्र समझते थे। (पृ० १०२)। (१०) मदिरा (सुरा) का यद्यपि प्रचार था परन्तु उसको बुरा समझा जाता था। (पृ० १०२)। (११) नाचने और गानेकी प्रथा थी और संगीत-विद्या आरम्भिक अवस्थासे उन्नति कर चुकी थी। (पृ० १०३)। . (१२) ऋतसे अभिप्राय प्रथम तो प्राकृतिक नियम और फिर नैतिक नियमसे है। (पृ० १०३)। (१३) ऋग्वेदमें जन्तुओं की पूजाका उल्लेख नहीं । जन्तुओंको 'पवित्र समझकर उनका पूजन न किया जाता था। (पृष्ठ १०५ तथा १०६)। (१४) न सांपोंकी पूजाका कोई उल्लेख है। (पृ० १०६ )। (१५) ऋग्वेदमे मनुष्यके बलिदानका कोई चिह्न नहीं । (पृ. १०६)। (१६) देवताओंके प्रति भारतीयोंका चर्ताव ऐसा न था जिससे पाया जाता हो कि वे उनसे डरते थे। उनकी सम्मतिमें यदि देवताओंकी उचित रीतिसे पूजा की जाये तो उनसे काम लिया जा सकता था। (पृ० १०६)। (१७) सतीका कोई चिह्न नहीं और न आवागमनका है। (पृ० १०८.)। (१८) मन्त्रों में अधिकतर बल शक्तिपर दिया गया है न कि आचरणपर। (पृ० १.०८)। . (१६) अग्वेदकी भाषा असाधारण रूपसे पूर्ण है ।(१० १०६)। 1