पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७१

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भारतवषका हातहास वैदिक साहित्यमें 'समिति' और 'सभा' शब्दोंका बहुत प्रयोग पाया जाता है। यह भी लिखा है कि 'समिति' अर्थात् सर्वसाधारणका मण्डल राजाका निर्वाचन करता था। ब्राह्मण- साहित्यमें 'घहिप्कृत' राजाओंका उल्लेख प्रचुरतासे मिलता है इससे प्रतीत होता है कि प्रजा उतनी आज्ञाकारिणी न थी जितनी कि कभी कभी प्रकट की जाती है। राजा लोग बहुत यार सिंहासन और राजमुकुटसे भी वंचित कर दिये जाते थे। मदिरापान 'महापाप' बताया गया है। न्यायका भाव यहांतक बढ़ा हुआ था कि जय राजा और पुरोहितसे संयोगवश एक लड़का मर गया तो उस विषयपर ( समिति या सभामें ) बहुत चर्चा हुई और बहुत सा वाद-विवाद हुआ (पृ. १३३), अन्ततः राजाको प्रायश्चित्त करना पड़ा। फौजदारी अपराधोंके लिये केवल एक कुल्हाड़ीकी परीक्षा (आरडियल ) का वर्णन है। परन्तु यह नहीं बताया गया कि कि इसका क्या अर्थ था। सूत्रोंमें अपराधोंके बदले में दंडकपसे नगदी देनेका वर्णन है । क्षत्रियकी मृत्युका बदला एक सहस्र गाय, वैश्यकी मृत्युका एक सौ, और शूद्रकी मृत्युका दस गाय निपत था। शूद्रकी अवस्थामें दस गायोंके अतिरिक्त, जो इत व्यक्तिके उत्तराधिकारियोंको दी जाती थीं, एक सांड राजाको भी देना आवश्यक होता था। कानूनों, अपराधों और अमियोगोंका उल्लेव कानून । करते हुए इस परिच्छेदके लेखकने एक एक सूत्रके प्रमाणसे सामान्य परिणाम निकाले हैं और यह नहीं यताया कि याकी सूोंने उसी विषयपर क्या व्यवस्था दी है। उदाहरणार्थ यह लिखा है कि एक सूत्रमें खीको शूद्रका पद दिया गया है.' और उसको सम्पत्तिको स्वामिनी बननेके अयोग्य बना दिया गया