पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७२

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केम्ब्रिज हिस्टरी पाव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४२६ है। उसकी अपनी मायपर उसको कोई अधिकार न था। वह उत्तराधिकारियों में गिनीन जाती थी, यद्यपि इस विषयमें धर्म- शास्त्रों और स्मृतियोंकी व्यवस्थायें परस्पर विरोधी हैं। कुछ सूत्रोंमें स्त्रीका पद बहुत नीचा है, कुछमें ऊँचा है। कुछ सूत्रों में नर-सन्तानके अभावको अवस्थामें स्त्रीको दायाद बताया गया है और उसे अपने स्त्री-धनपर पूरे पूरे अधिकार दिये गये हैं। शिल्पों की सूची बहुत लम्बी और पूर्ण है । धातुओंमेंसे सोने. चाँदी, सीसे, ताम्बे और लोहेका उल्लेख है। कहा गया है कि उस समयमें सिके न थे। परिच्छेदमें उनके पसनका, कुंकुमसे रंगे हुए परिधानका और रेशमी कपड़ोंका वर्णन है। मांस. भक्षणको कहीं कहीं युरा कहा गया है । अथर्ववेदमें मांस खाने- को मदिरा-पानके समान पाप बताया गया है ( पृ० १३७) । चिकित्सा शास्त्रम उस कालमें बहुत उन्नति हुई। बहुतसे रोगोंके नाम लिखे हुए हैं, यद्यपि शरीर-व्यवच्छेद-विद्या ( मना. टमी) का ज्ञान अभी बहुत अधूरा था। नक्षत्र-विद्याके विषय में अध्यापक रपसनकी सम्मति है कि नक्षत्रोंका शान भारतमें बेबीलोनसे धाया। उसकी सम्मतिमें चैदिक मृपियोंको ज्योतिषका कुछ भी शान न था, यद्यपि प्राहाणों- के कालमें इसमें पर्याप्त उन्नति हो गई थी (पृ० १४०) । इस विवादके लिये किसी भी सनदका प्रमाण नहीं दिया गया। . उपनिषदोंके विषयमें उक अध्यापक महाशय कोई उच्च सम्मति नहीं रखते। हाँ, इतना बेमानते हैं कि किसी किसी स्थानपर वादानुवादमें महत्ता और गौरव पाया जाता है। यहांतफ तो भारतका इतिहास अधिकांशमें फत्पनामापर और किसी मंशमें हिन्दू-सादित्यके माधारपर लिखा गया है।