पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७४

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केम्ब्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड राजस्वकी दर १६ से ०८३ तक दूमिके राजस्वका दर। लिखी गई है (पृ. १६६)। ब्राह्मण और त्रिय भी खेती-बारी करते थे। कृषि कर्मको कोई घृणाकी प्टिसे नहीं देखता था। श्रीमती हाइस डेविड्स-पत्नी दासत्वका मौजूद दासत्व । होना बतलाती हैं। उनके लेखानुसार आगे लिपी रोतियोंसे मनुष्योंको दासत्वका नरक भोगना पड़ता था:- सडाईमें पकड़े जानेसे, मृत्यु-दण्डके स्थानमें, ऋणके बदले, अपनी इच्छा, अथवा न्यायालयके निर्णयसे । गुलामोंको अधि- कार था कि रुपया चुकाकर अपनी स्वतन्त्रताप्राप्त कर लें अथवा कोई उनको स्वतन्त्र कराई। परन्तु यह बात ध्यान देने योग्य है कि इन रीतियों में क्रम द्वारा गुलामीका वर्णन नहीं। सामान्य भवस्थाओले यह प्रतीत होती है कि उस कालमें भारतमें जिस गुलामीकी प्रथा थी वह अपने स्वरूपमें रोमन और यूनानीकाल. की गुलामीसे भिन्न थी। आधुनिक कालको गुलामीसे तो उसे कुछ अनुपात ही न था। सम्भवतः इसी विचारसे भगस्थनीज़ने लिया है कि भारतमें गुलामीकी प्रथा न थी। व्यसायियोंकी व्यवसायियोंकी अपनी कमेटियां थीं। इनको पजायते। अंगरेजी भाषामें गिद' कहते हैं और संस्कृत में सेनी या श्रेणी लिखा है। इन श्रेणियोंके प्रमुख अर्थात् प्रधान कई चार मन्त्रीकी पदवी रपते थे। चौसोंके साहित्यसे प्रतीत होता है कि उस कालमें अमी जाति-पांतिके बन्धन इतने कड़े न हुए थे । लोग आपसमें एक दूसरेके साथ रोटो-पेटीका सम्बन्ध स्वतन्त्रता-पूर्वक करते थे। हां, चण्डालो. के हायका छुआ हुआ कोई न खाता था और कतिपय व्यवसायोंको कम पसन्द किया जाता था, जैसे कि मत.